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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म | मधु चमरेंद्र कर दिया जो अमोघ त्रिशूल उसकर अति गर्वित । तथापि उस मधुको शत्रुधन सुन्दर पुराण जीतेगा जैसे हायी महाबलवानहै और मुंडकर वृचोंको उपाडे है मद मरे है तथापि उसे सिंहजीते हैं यह । शत्रुघ्न.लक्ष्मी और प्रताप कर मंडितहै महाबलवान, शूरवीरहै महा पंडित प्रवीणहै और इसके सहाई। श्रीरामलक्ष्मणहें और श्राप सवही मले २ मनुष्य इसके सम्है इस लिये यह शत्रुध्न अवश्य शत्रु को जीतेगा जब ऐसे बयन कृतांतवक्रने कहे तव सवही प्रसन्नमव और पहिलेही मंत्रीजनोंने जो मथुरामें हल । का पठाये थे वे श्रायकर सर्व वृतांत शत्रुघ्नको कहते भए । हे देव मथुगनगरीकी पूर्व दिशाकी अोर अत्यंत । मनोग्य उपवन है वहां रणवास सहित राजा मधु रमें है गंजाके जयन्ती नाम पटराणी हैं उस सहित वनक्रीड़ा करे है जैसे स्पर्श इंद्रिय के वश भया गजराज बन्धनमें पड़े है, तैसे राजा मोहित भया विषयों के बन्धनमें पडाहै, महा कामी अाज छठादिनहै कि सर्व राज्य काज तज प्रमादके बशभया बनमें तिष्ठे.. है कामान्ध मूर्ख तुम्हारे पागमको नहीं जाने है,और तुम उसके जीतवेकी बांछा करी है इसकी उसे सुध। नहीं और मंत्रियों ने बहुत समझाया सो काहूकी बात धारे नहीं, जैसे मूढ रोगी वैद्यकी औषध न धारे। इस समय मथूरा हाय अावे तो अावे और कदाचित मधुपुरी में धसातोसमुद्रसमान अथाहहै, ये बचन । हलकारोंके मुखसे शत्रुन्न सुनकर कार्य प्रवीण उसही समय बलवान योधावोंके सहित दौड कर मथुरा गया, अर्धरात्रिके समय सर्वलोक प्रमादी थे और नगरी राजा रहितथी, सो शत्रुघन नगरमें जाय। पेठा जैसे योगी कर्मनाश कर सिद्धपुरीमें प्रवेशकरे, तैसे शत्रुधन द्वारको चरकर मथुरामें प्रवेश कस्ता भया मथुरा महामनोग्य है क्व बन्दीजनाके शब्द होते भये जो राजा दशरथका पुत्र शत्रुघन जयवंत होवे ये । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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