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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्य पुरास ICyen ज्ञानवान कहते भए भरत की महिमा कही न जाय जिनका चित्त कभी संसार में न रचा जो शुद्धबुद्धि है तो उनकी ही है और जन्म कृतार्थ है तो उनका ही है, जे विष के भरे अन्न की न्याई राज्य को तज कर जिनदीक्षा धरते भए वे पूज्य प्रशंसायोग्य परमयोगी उनका वर्णन देवेंद्र भी न करसके तो औरों की क्या शक्ति बे राजा दशरथ के पुत्र केकईके नंदन तिनकी महिमा हम से न कही जाय इसभांति भरतके गुण गावते एक महूर्त सभा में तिष्ठे समस्त राजा भरत ही के गुण गाया करें, फिर श्रीराम लक्ष्मण दोनों भाई भरत के अनुराग कर अति उद्धेग रूप उठे सब राजा अपने अपने स्थानक गए घर घर भरत की चर्चा सब ही लोक आश्चर्य को प्राप्त भए यह तो उनकी यौवन अवस्था और यह राज्यऐसे भाई सर सामिग्री पूर्ण ऐसे ही पुरुष तजें सोई परम पदको प्राप्त होवे इसभांति सब ही प्रशंसा करते भए । ___ अथानन्तर दूजे दिन सब राजा मंत्रकर रामपै आए नमस्कारकर अतिप्रीतिसे वचनकहतेभए, हे नाथजो हम असमझहैं तो आपकेऔर बुद्धिवन्तहैं तो आपकेहम पर कृपाकर एक बीनती सुनो हे प्रभो हमसब भूमि गोचरो औरविद्याधर आपका राज्याभिषेककरें, जैसे स्वर्ग में इन्द्रका होय हमारेनेत्रऔरहृदय सफल होने तुम्हारे अभिषेककेसुख कर पृथिवी सुखरूप होय, तबराम कहते भए तुम लक्ष्मणका राज्याभिषेक करो वह पृथिवी का स्तंभ भधर है समस्त राजावों का गुरु वासुदेव राजावों का राजा सत्य गुण ऐश्वर्य का स्वामी सदा मेरे चरणों को नमे इस उपरांत मेरे राज्य कहां तब वे समस्त श्रीराम की अतिप्रशंसा कर जय जयकार शब्द कर लक्ष्मणपै गए और सब वृत्तांत कहा तब लक्ष्मण सबों को साथलेय रामपै पाया । अब सा मोइ नमस्कार कर कहता भया कि हे वीर इसराज्य के स्वामी आपही हो मैंतो आपका अाज्ञा For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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