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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पुराग ॥६॥ न करनी धनकी बांछा न राखनी सर्व पापारम्भ तजमे परोपकार करना पर पीड़ान करनी यह मुनिकी अाज्ञा सुनकर धर्मका स्वरूप जोन राजा बैराग्यको प्राप्त भये मुनिको नमस्कार कर अपने पूर्व भव पूछे चार ज्ञान के धारक मुनि श्रुतिसागर संक्षेपताकर पूर्व भव कहते भये कि हे राजन् ! पोदनापुर में हित नामा एक मनुष्य उसके माधवी नामा स्त्री उसके प्रीतमनामा तू पुत्रथा और उसी नगरमें राजा उदयाचल राणी अर्हश्री उसका पुत्र हैमरथ राजकरे सो एक दिन जिन मन्दिरमें महा पूजा कराई वह पूजा आनन्दकीकरणहारी, सो उसके जयजय कार शब्द सुनकर तैनेभी जयजयकार शब्द किया सो यहपुण्य उपार्जा कालपाय मुवा और यक्षोंमें महा यक्ष हुवा एक दिन विदेह क्षेत्र में कांचनपुर नगर के वन में मुनियों को पूर्व भवके शत्रु ने उपसर्ग किया यक्ष ने उसको डराकर भगा दिया और मुनियों की रक्षा करी सो अति पुण्यकी राशि उपार्जी के एक दिन में आयु पूरी कर यक्ष तडिदंगद नामा विद्याधरकी श्रीप्रभा स्त्री के उदित नामा पुत्र भया अमर विक्रम विद्याधरों के ईश बन्दनाके निमित्त मुनि के निकट आए थे उनको देखकर निदान किया महा तपकर दूसरे स्वर्ग जाय वहां से चयकर तू मेघवाहमके पुत्र हुवा । हे राजा ! तूने सूर्यके रथकी न्याई संसार में भमण किया जिह्वा का लोलुपी स्त्रियोंके वशवर्ती होय अनन्त भवधरेतेरे शरीर इस संसारमें एते व्यतीत भये जो उनको एकत्र करिये तो तीनलोकमें न समावें और सागरों की प्राय स्वर्ग में तेरी भई जब स्वर्गही के भोग से तू तृप्ति न भया तो विद्याधरों के अल्प भोग से तू कहा तृप्तिहोयगा और तेरा आयु भी अब आठ दिन का वाकी है इसलिये स्वप्न इन्द्रजाल समान जे भोग उनसे निरबृत्य हो ऐसा सुन अपना मरण जाना तोभी विषादको न प्राप्त भये प्रथमतो For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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