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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म राख ८३६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानी सर्व लोक के हितु तिन्हों ने राजा से कही तेरा दादा सर्प भया सो तपस्वियों के काष्ठ मध्य तिष्ठे है सो तापसी का विदारेंगे सो तू रक्षाकरियो तब यह वहां गया जो मुनिने कही थी त्योंही दृष्टि पड़ी इसने सर्प बचाया और तापसियों का मार्ग हिंसा रूप जाना तिन से उदास भया मुनिम्रत धरिये का उद्यम किया तब श्रुतिरति पुरोहित पापकर्मीने कही हे राजन् तुम्हारे कुल विषे वेदोक्त धर्म चला श्राया है और तापसही तुम्हारे गुरू हैं इसलिये तू राजा हरिपतिका पुत्रहै तो वेदमार्ग का ही आचरण कर जिनमार्ग मत चावरे पुत्रको राज्यदेय वेदोक्त विधिकर तू तापस का व्रतधर मैं तेरे साथ तप धरूंगा, इस भांति पापी पुरोहित मूढमति ने कुलंकर का मन जिनशासनसे फेरा और कुलंकर की स्त्री श्रीदामा सो पापिनी परपुरुषा सक्त उसने विचारी कि मेरी कुक्रिया राजाने जानी इस लियतप धारे हैं सो न जानिये तपधरे कै न घरे कदाचित मोहिमारे इसलिये मैंही उसे मारूं तब उसने विषदेयकर राजा और पुरोहित दोनों मारे सो मरकर निकुञ्जया नामा वन विषे पशुघात के पाप से दोनों सुखा भये फिर मीडकभये मूसा भए मोरभए सर्प भए कूकरभये कर्मरूपपवन के प्रेरे तिर्यंचयोनि में भ्रमे फिर पुरोहित श्रुति रतिका जीवहस्त भया और राजा कुलंकरका जीव मीडक भया सोहाथी के पगतले दबकर मुवा, फिर मींडकभयास सूकेसरोवर में कागनेभपा सो कूकड़ाभया हाथीमर माजर भया उसने कुक्कुट भषा कुलंकरका जीव तीनजन्म कूकड़ा भयासो पुरोहित के जी मारनेभपा फिरये दोनों मुसामार्जार मच्छभए सो झीवर ने जाल में पकडे कुहाडेन से काटे सो मुवे दोनों मरकर राजग्रही नगर विषे वव्हासनामा ब्राह्मण उसकी उल्का नाम स्त्री के पुत्रभये पुरोहित के जीवकानाम विनोद राजाकुलंकर के जीव का नाम रमण सो महादरिद्री और विद्या रहित तबरमण ने For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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