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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराण पम पुत्रों के लिये तत्पर जिनके स्तन से दुग्ध झरे महा गणों की घग्णहारी कौशिल्या सुमित्रा २२ और केकई नाममा शारों माता मंगल विष उद्यमी पुत्रों के समीप आई. राम लक्ष्मण पुष्पक विमान से उत्तर मौलायों से मिले माताओं को दोख हर्ष को प्राप्त भए कमल मानने दोनों भी लोकपालसमान हाथ जोड़ न मोजत होय अपनी स्त्रियहित माताको प्रणाम करतेमाचारों ही माला नेकपकार । अलोग देती भइ तिनही मील कल्याण की करणहारी है और वो ही माता राम लक्षामाकोर से लगाय परम सुख को पास कई जन कारख ही जाने काहिब में न आये बारम्बार उसे लगायलिस पर हाथ धरती भई आनंद के अश्रुपात कर पूर्ण हैं नेत्रजिन में परस्पर माता पुत्र कुशल क्षेम सुख दुःख की वार्ता पूछ परम संतोष को प्राप्त भए. माता मनोरथ करती थी सो हे श्रेणिक बांछासे अधिक मनोरथ पूर्ण भए वे माता योधावोंकी जननहारी माधवोंकी भक्त जिन धर्म में अनुरक्त सुन्दर चित्त बेटानों की बह सैकड़ों तिन को देख चारों ही अति हर्षित भई अपने योधा पुत्र तिनके प्रभावकार पूर्ण पुण्यके उदय कर अति महिमासंयुक्त जगतमें पूज्य भई राम लक्षमण का सागर पर्यंत कंटक रहित पृथिवी में एक छत्र राज्य भया सवार यथेष्ट आज्ञा करते भए रामलक्षमण का अयोध्या में आगमन और मातावों से तथा भाइयों से मिलाय यह अध्याय जो पढ़े सुनेशुद्ध है बुद्धि जिसकी सो पुरुष मनवांछित संपदा को पावे पूर्ण पुण्य उपार्जे शुभमति एक ही नियम दृढ़ होय भावन की शुद्धतासे करे तो अतिप्रताप को प्राप्त होय पृथिवी में सूर्य समान प्रकाश को करे इसलिये अबत तज व्रत नियमादिक धारण करो ।। इति बयासीवां पर्व संपूर्णम् ॥ ___ अथानन्तर राजा श्रेणिक नमस्कार कर गौतम गणधर को पूछता भया, हे देव श्रीराम लक्षण For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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