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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुराण ४८ १६ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथानन्तर सूर्य के उदय होतेही बलभद्र नारायण पुष्पक नामा विमान में चढ़कर अयोध्या को गमन करते भए प्रकार के वाहनों पर थारू विद्याधरों के अधिपति राम लक्ष्मण की सेवा में तत्पर परिवार सहित सँग जे छत्र और ध्वजावोंकर रोकी है सूर्य की प्रभा जिन्होंने आकाश में गमन करने दूर से पृथिवीकी देखते जाय हैं पृथिवी गिरि नगर बन उपवनादिक कर शोभित लवण समुद्र को fast fame of के भरे लीला सहित गमन करते मागे चाए कैसा है लवण समुद्र नानाप्रकार के जलचरजीवोंके समूहकर भरा है रामके समीप सीता सती अनेक गुणांकर पूर्ण यानों साक्षात लक्ष्मीही है सो सुमेरु पर्वतको देखकर रामको पूछतीभई हे नाथ यह जंबूद्वीपके मध्य अत्यन्त मनोग्य व कमल समान क्या दीखे है तब राम कहतेभर हे देवी यह सुमेरु पर्वत है जहां देवाधिदेव श्रीमुनि सुव्रतनाथका जन्माभिषेक इन्द्रादिक देवों ने किया कैसे हैं देव भगवान् के पाँचो कल्यानक में जिनके प्रति हर्ष है यह मुंगेरु रत्न मई ऊंचे शिखरों कर शोभित जगत् में प्रसिद्ध है और फिर आगे जाकर कहते भयं यह दंडक न है जहां लंकापति ने तुमको हरा और अपना काज किया इस बनमें चार मुनिको हमने परणा करायाथा इसके मध्य यह सुन्दर नदी है और हे सुलोचने यह वंशस्थल पर्वत जहां देश भूषण कुलभूषण का दर्शन किया उसी समय मुनोंको केवल उपजा और हे सौभाग्यवती कल्याणरूपिणि यह बालखिल्य का नगर जहां लक्ष्मण ने कल्याणमाला पाई और यह दशांग नगर जहां रूपवतीका पिता वज्रक परम श्रावक राज्य करे फिर जानकी पृथिवी पतिको पूछती भई हे कान्ते यह नगरी कौन जहां विमान समान घर इन्द्रपुरी से अधिक शोभा अबतक यह पुरी मैंने कभी भी न देखी ऐसे जानकी के वचन सुन जानकी For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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