SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 823
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पद्म पुरा राजा दशरथ की राणी. प्रशंसा योग्य श्रीरामचन्द्र मनुष्यों में रत्न तिनकी माता, महा सुन्दर लक्षण १२ की धरण हारी तुम को कौन ने रुसाई जो तुम्हारी आज्ञा नमाने सो दुरात्मा है वारही उसका राजा दशरथ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निग्रह करें तब नारदको माता कहती भई हे देवर्षे तुम हमारे घरका वृतांत नहीं जानो हो इसलिये कहो हो और तुम्हारा जैसा वात्सल्य इस घरसेथा सो तुम विस्तीर्ण किया कठोर चित्त होयगए अब यहां आावना ही तजा अब तुम बातही न बूझो हे भ्रमणप्रिय बहुत दिन में आए तब नारदने कही हे माता धातुकी खंड द्वीप में पूर्व विदेह क्षेत्र वहां सुरेंद्र रमणनामा नगर वहां भगवान तीर्थंकर देवका जन्म कल्याणक या सो इन्द्रादिक देव आए भगवानको सुमेरुगिरि लेगए अद्भुत विभूतिकर जन्माभिषेक किया सो देवाधिदेव सर्व पाप नाशनहारे तिनका अभिषेक मैं देखा जिसे देखे धर्मकी बढ़वारी होय वहां देवों ने आनन्द से नृत्य किया श्री जिनेंद्र के दर्शन विषे अनुराग रूपहै बुद्धि मेरो सो महामने हर धातकी खंड विषे तेईस वर्ष मैंने सुखमे व्यतीत किये तुम मेरी मातासमान सो तुमको चितार इस जम्बूद्वीप के भरतचेत्र में आया अब कोइक दिन इस मंडलही में रहूंगा अब मोहि सब वृतांत कहो तुम्हारे दर्शन आया हूं तब कौशल्याने सर्व वृतांत कहा भामंडलका यहां आावना और विद्याधरों का यहां आवना और भामंडलको विद्याधरों का राज्य और राजादशरथका अनेक राजावों सहित वैराग्य और रामचन्द्रका सीता सहित और लक्षमणके लार विदेशका गमन फिर सीताका वियोग सुग्रीवादिकका राम से मिलाप रावण से युद्ध लंकेशकी शक्तिका लक्षमण के लगना फिर द्रौणमेघ की कन्याका वहां गमन एती खबरतो हमको है फिर क्या भया सो खबर नहीं, ऐसा कह महादुःखित होय अश्रुपात डारती भई For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy