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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुराण ॥८०७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तूणीमत नामापर्वत विषे अहिमिंद्र पदको प्राप्त भए सो पर्वत नानाप्रकारके वृक्ष और लतावो कर मंडित अनेक पक्षियोंके समूह कर तथा नानाप्रकारके बनचरों कर भरा हो भव्यजीव हो जीवदया आदि अनेक गुणों कर पूर्ण ऐसाजो जिनधर्म उसके सेवन से कछु दुर्लभ नहीं जिनधर्म के प्रसाद से सिद्धपद अहिमिंद्रपद इत्यादिकपद सबही सुलभ हैं जम्बूमालीका जीव अहिमिंद्र पदसे ऐगवत क्षेत्र विषे मनुष्य हाये केवल उपाय सिद्धपद को प्राप्त होवेंगे और मंदोदरीका पिता चारण मुनि होय महा ज्योतिको घरे द्वीप विषे कैलाश आदि निर्वाण क्षेत्रोंकी और चैत्यालयों की बंदना करते भये देवोंका है श्रागमन जहां सो मय महामुनि रत्नत्रय रूप श्राभूषण कर मंडित महावीर्य धारी पृथिवी विषे विहार करें। और मारीच मंत्री महा मुनि स्वर्ग विषे वडी ऋद्धिके धारी देव भये जिनका जैसा तप तैसा फल पाया सीताके दृढ़ कर पतिकामिलाप भया जिस को रावण डिगाय न सका सीताका अतुलधीर्य अद्भुतरूप महानिर्मल बुद्धि भरतारविषे अधिकस्नेह जो कहने में न आवे सीता महा गुणों र पूर्णशील के प्रसादसे जगत विषे प्रशंसा योग्य भई कैसी है सीता एक निजपति विषे है संतोष जिसके भवसागर की तरणहारी परंपराय मोतकी पात्र जिसकी साधु प्रशंशा करें गौतमस्वामी कहें हैं है श्रेणिक जो स्त्री विवाहही नहीं करे बाल ब्रह्मचर्य घरे सो तो महाभाग्यही है और पतिव्रता का व्रत च्यादरे मनबचनकायकर परपुरुषका त्याग करे तो यह व्रत भी परम रत्न हैं स्त्री को स्वर्ग और परंपराय मोक्ष देवे को समर्थ है शीलवत समान और व्रत नहीं शील भवसागर की नाव है राजामय मंदोदरीका पिताराज्य अवस्था में मायाचारी था और कठोर परणामी था, तथापि जिन धर्म के प्रसादसे राग द्वेष रहित हो अनेक ऋद्धि For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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