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पद्म पुराण
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अविनाशी राज्य किया कर्म रूप बैरी ज्ञान शस्त्रसे निराकरण किए कैसे हैं कर्म शत्रु सदा भव भ्रमण के कारण और जन्म जरा मरण भय रूप श्रायुधोंकर युक्त सदा शिवपुर पथके निरोधक कैसा है वह शिवपुर उपमा रहित नित्य शुद्ध जहां परभाव का ध्याश्रय नहीं केवल निज भावका याश्रय है अत्यन्त दुर्लभ सो तुम थप निर्वाणरूप औरोंको निर्वाणपद सुलभ करोहो सर्व जगतको शांति के कारण हो हे श्री शांतिनाथ मन वचन काय कर नमस्कार तुमको हे जिनेश हे महेश अत्यन्त शांति दिशाको प्राप्तभए हो स्थावर जंगम सर्वजीवोंके नाथहो जो तुम्हारे शरण यावे तिसके रक्षक हो समाधि बोघ के देनहारे तुम' एक परमेश्वर सवन के गुरु सबके बांधव हो मोक्ष मार्ग के प्ररूपणहारे सर्व इंद्रादिक देवों कर पूज्य धम तीर्थके कर्ताहो तुम्हारे प्रसाद कर सर्व दुख से रहित जो परम स्थानक ताहि मुनिराज पावे हैं हे देवाधिदेव नमस्कार है तुमको सर्व कर्म विलय किया है है कृतकृत्य नमस्कार तुमको पाया है परम शांति पद जिन्हों
तीनलोक को शांति के कारण सकल स्थावर जंगम जीवोंके नाथ शरणागत पालक समाधि बोध के दाता महाकांतिके धारक हो हे प्रभो तुमही गुरु तुमही बांधव तुमही मोक्षमार्ग के नियंता परमेश्वर इन्द्रादिक देवोंकर पूज्य धर्म तीर्थक कर्ता जिनकर भव्य जीवोंको सुख होय सर्व दुखके हरणहारे कर्मों के अन्तक नमस्कार तुमको, हेलव्ध लभ्य नमस्कार तुमको लब्ध लभ्य कहिये पाया है पायवे योग्य पद जिन्होंने महा शांत स्वभावमें विराजमान सर्व दोष रहित हे भगवान कृपाकगे वह अखंड अविनाशी पद हमें देवो इत्यादि महास्तोत्र पढ़ते कमल नयन श्रीराम प्रदक्षिणा देकर बन्दना करतेभए महा विवेकी पुण्यकर्म में सदा प्रवीण और रामके पीछे नम्रीभूत है अंग जिसका दोनोकर जोड़े महा समाधान रूप जानकी स्तुति
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