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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पण ।। ५ ।। १४३ भामंडल का यह सुन कि सीता ने राम को बराहे विवाद रूप होय सोता के देश जाना रास्ते में सीताको अपनी बहन जान जनक विदेहा और सीता से मिलाप ५२ल १५५ जितका लक्ष्मण को बरना ५४२ तीसरा महा अधिकार श्रीराम १५६ राम लक्ष्माकर देश भूषणा ४४ कुलभपण मुनियों का उपस निवारणा बनवास ९४४ राजा दशरथ को अपने भव सुनकर बेराग्य होना १४५ केक को दशरथ से वर मांगना भरत को राज्य दिलाना १४६ श्रीरामचन्द्र लक्ष्मण और सीमा का बनको जाना १४७ भरत का राज्याभिषक और दशरथका मुभि होना १४८ द्यति भहारकाचार्य कर श्रावक धर्म का वर्णन करना १४९ श्रीराम लक्ष्मणका बनमें बिहार १५० राम लक्ष्मणका सिंहोदर से बकर्म को बचाना १५१ राम लक्ष्मण का रौद्रभूत से बालखिल्य को उड़ाना १५२ राम लक्ष्मणका कपिल ब्राह्म का उपकार ४६० ४६७ ५७० ४९० www.kobatirth.org દ્ ५९३ १५३ लक्ष्मया का बनमाला को फांसी से बचा कर उसको परणमा ५२५ १५४ श्रीराम लक्ष्मण का नृत्यकारणी बनकर राजा अति वीर्य को पकड़ना ५८३ ५८४ ४० ५०३ १५० लक्ष्मण का खर दूषन युद्ध १६० रावन से सीता का हरन १६९ विराधितका लक्ष्मन से मिलाप ५ ४८३१६२ लक्ष्मन से सरदूषन कामरना ६०९ ४८८ १६३ रत्नजटी कर रावन को सीसा जाते हुए देखना ९६३ रावण का सीता को लेजाकर उसको समझाना और मीता का मानना फिर विभीषण और मंत्रियों का रावण को समझाना कि सीता को राम ५४७ १५७ श्रीराम लक्ष्मण को जटायु पक्षी की प्राप्ति चौथा महाअधिकार युद्ध १५८ लक्ष्मण का बांसों के ग्रिह में संक को काटना For Private and Personal Use Only ५६४ ६०२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चन्द्रजी को देदो और रावण का न मानना ९६४ राम लक्ष्मण से सुग्रीव का मिलाप १६५ राम का मायामई सुग्रीव को मारना ६२५ १६६ रामका सुग्रीव की पुत्रीको बरमा ६२६ १६१ सुग्रीवका सीनाको टूढने जाना और रत्नजटाको रामपैलाना ६२९ १६८ लक्ष्मण कर कोटि शिला का उठावना १६० हनुमान का रामचन्द्र जी से मिलाप १० मानका सोनाकी सुध लेने को लंका जाना ૧ E B ÉÆ ६४६ १११ हनुमानका मनियों का उप दूर करना और राजा मध्य का अपनी कन्यायों का रा-चन्द्रजी से विवाह करना १७२ हनुमान का लका में अनेक उपद्रव करना और मीता को रामको कुश के ममाचार सुनाना६५२ ११३ नुमानका सीताकी सुधलेकर रामपे खाना ૬૦ ६७२
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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