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छुड़ा और इन सब सहित पद्म सरोवर में स्नान किया कैसा है सरोवर महा सुगन्ध है जल जिसका पुराण उस सरोवर में स्नान कर कपि और राक्षस सब अपने अपने स्थानक गए ॥
पद्म
अथानन्तर कैयक सरोवर के तीर बैठे विस्मय कर व्याप्त है चित्त जिनका शूरवीरों की कथा करते भए कैयक क्रूर कर्मको उलाहना देते भए कैयक हथियार डारते भए कैयकरावण के गुणोंकर पूर्ण है चित्त जिनका सो पुकार कर रुदन करते भए कैयक कर्मोंकी विचित्र गति का वर्णन करते भए और कैयकसंसारवनको निन्दते भए कैसा है संसार बन जाथकीनिकसना प्रतिकठिन है के यक भोग विषेचरुचिको प्राप्तभएराज्यलक्षमी को महा चंचल निरर्थकजानते भएऔर यक उत्तम बुद्धियकार्यं कीनिन्दा करते भए कैयक रावण की गई की भरीकथा करते भए कैयक श्रीराम के गुण गावते भए कैयक लक्षमण की शक्ति का गुण वर्णन करते भए, कैयक सुक्रत के फल की प्रशंसा करते भए निर्मल है चित्त जिनका घरघर मृतकों की क्रिया होती भई, बाल वृद्ध सब के मुख यही कथा लंका विषे सर्व लोक रावण के शोक कर अश्रुपात डारते चतुर्मास्य करते भए शोक कर द्रवीभूत भया है हृदय जिनका, सकल लोकों के नेत्रों से जल के प्रवाह वहे सो पृथिवी जल रूप हो य गई और तत्वोंकी गौणता दृष्टि पड़ी मानो नेत्रों के जलके भयकर याताप घुसकर लोकों के हृदय में पैठ सर्वलोकों के मुख से यह शब्द निकसे धिकार विकार अहो बड़ा कष्ट भया हायहाय यह क्या अदभुत भया इसमांति लोक विलापकरे हैं औरांडारें हैं कैयक भूमिमें शय्याकरते भए मौनधार मुख नीचा करते भये निश्चल है शरीर जिनका मानोंकाष्टके हैं कैयक शस्त्रोंको तोड डारतेभए कैयकोंने आभूषण डार दिए और स्त्री के मुखकमल से दृष्टि संकोची कैयक अति दीर्घ उष्ण निस्वासनाषे हैं सो कलुष होय गए अधर जिनके
भावले त ३००
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