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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पराण 4.१११॥ रामके सेवकों का भय मिटा परस्पर दोनों सेनाके योघावों में शस्त्रों का प्रहार भया, सो देख देख देव । आश्चर्यको प्राप्त भए और दोनों सेना में अंधकार होयगया प्रकाशरहित लोक दृष्टि न पड़े, श्रीराम राजा । मयको बाणों कर अत्यन्त अालादते भए थोडे ही खेद कर मय को विहल किया जैसे इन्द्र चमरेन्द्र को करे तब राम के बाणों कर मयको विहल देख, रावण काल समान क्रोधकर राम पर घाया तब लक्ष्मण रामकी ओर रावण को श्रावता देख महातेज कर कहते भए हो विद्याधर तू किधर जाय है में तुझे प्रोज देखा खड़ा रहो खड़ारहो हे रंक पापी चोर परस्त्रीरूप दीपकके पतंग अघमपुरुष दुराचारी अाज में तोसों ऐसी करूं जैसी काल न करे, हे कुमानुष श्रीराघवदेव समस्त पृथिवीके पति तिन्होंने मुझे आज्ञाकरी है कि इस चोरको सजा देवो, तब दशमुख महाक्रोध कर लक्ष्मणसे कहता भया रे मूढ़ तैने कहां लोकप्रसिद्ध मेरा प्रताप न सुना इस पृथिवीमें जे सुखकारी सारवस्तु हैं सो सबमेरी हैं में राजा पृथिवीपति जो उत्कृष्ट वस्तु सो मेरी, घंटा गज के कंठ में सोहे स्वानकै न सोहे है तैसे योग्यवस्तु मेरे घर सोहे और के नहीं त मनुष्यमात्र बृथा विलाप करे तेरी क्या शक्ति तू दीन मेरे समान नहीं में रंक से क्या युद्धकरूंत अशुभं के उदयसे मोसे युद्ध किया चाहे है सो जीवने से उदास भया है मूवा चाहे है । तब लक्ष्मण बोले तु जैसा पृथिवीपति है तैसा में नीकेजान हूंजतेरागाजनापूर्ण करूंगा जब ऐसा लक्ष्मणनेकहा तब रावणने अपने वाण लक्ष्मणपर चलाए, और लक्ष्मणने रावणपर चलाए, जैसेवर्षाकामेघ जलवृष्टिकर मिरिको आछादित । करेसेस काणबृष्टिकर उसने उसको वेढाऔर उसने उसको वेवासो रावणकेवाणलक्ष्मणनेवज्रदंडकरबीचही तोड़ | डारे आप तक प्रावने न दीए, बाणों के समूह छेदे भेदे तोडे फाड़े चूरकर डारे, सो घरती आकोश बोण । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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