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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराण मण्डल अायुध समान तीक्षण दृष्टि पड़ा और पूणमासीका चन्द्रमा अस्त होय गया श्रासन पर भूकम्प भया, दशों दिशा कंपायमान भई उल्कापात भए शगाली (गीदड़ी)विरसशब्द बोलती भई तुरंग नाड हिलाय विरस विरूप हींसतेभए, हाथी रूक्ष शब्द करतेभए सूण्ड से धरती कूटते भए, यक्षों की मर्ति के अश्रपात पड़े बृक्षमल से गिर पड़े सूर्य के सन्मुख काग कटक शब्द करतेभए दीले पक्ष किये महा व्याकुल भए. और सरोवर जलकर भरे थे वे शोषको प्राप्त भए और गिरियों के शिखर गिरपडे और रुधिरकी वर्षा भई थोडेही दिनमें जानिए है लंकेश्वर की मृत्यु होय ऐसे अपशकुन और प्रकार नहीं जब पुण्यक्षीण होय तब इन्द्र भी न बचें पुरुष में पौरुष पुण्य के उदय कर होय है जो कछू प्राप्त होना होय सोई पाइये है हीन अधिक नहीं प्राणीयों के शुरवीरता सुकृत के वल कर है देखो रावण नीति शस्त्र के विषे प्रवीण समस्त लौकिक नीति रीति जाने जैन ब्याकरण का पाठी महा गुणोंसे मंडित सो कर्मों से प्रेरा हुवा अनीति मोर्ग को प्राप्त भया मढ़ बुद्धि भया लोक में मरण उपरांत कोई दुःख नहीं सो इसको अत्यन्त गर्व कर विचार नहीं नक्षत्रोंके बलसे रहित और ग्रह सबही कराये सो यह अविवेकी रण क्षेत्रका अभिलाषी होताभया प्रताप के भंगका है भय जिसको और महा शूर वीरता के रससे युक्त यद्यपि अनेक शास्त्रों का अभ्यास किया है तथापि युक्त अयुक्त को न देखे. गौतम स्वोमी राजा श्रेणिकसे कहे हैं हे मगधा धिपति रावण महा मानी अपने मनमें विचारे है सो सुन सुग्रीव भामण्डलादिक समस्त को जीत और कुम्भकरण इन्द्रजीत मेघनादको छुड़ाय लंकामें लाऊंगा फिर बोनखशियोंका वंश और भामंडलकाममंडल | से पराभवकरूंगा और भूमिगोचरियोंको भमिमें न रहने दूंगा और शुद्ध विद्याधरों को धरा में थागा For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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