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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म ६९० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवकुल्य पराक्रमी प्रसिद्ध हैं यश जिनके सकल गुणों के मंडन युद्ध को निकसे महाबलवान मेघवाहन कुमार इंद्र के समान रावण का पुत्र अतिप्रिय इंद्रजीत सोभी निकसा जयंतसमान धीरबुद्धि कुम्भकरण सूर्य्य के विमान तुल्य ज्योतिप्रभव नामा विमान उस में अरूद्ध त्रिशूल का चायुध घरे निकसा और रावण भी सुमेरु के शिखर तुल्य पुष्पकनाम अपने विमान पर चढ़ इद्र तुल्य पराक्रम जिसका सेना कर आकाश भूमि को आबादित करता हुवा दैदीप्यमान आयुधों को घरे सूर्य समान ज्योति जिस की सो भी अनेक सामंतों सहित लंका से बाहिर निकसा वे सामंत शीघ्रगामी बहुरूप के घरणहारे वाहनों पर चढ़े कैथकों के रथ कैयकों के तुरंग कैयकों के हाथी कैयकों के सिंह तथा शूरसांभर बलध भैंसा उष्ट्र मीढ़ा मृग अष्टापद इत्यादि स्थल के जीव और मगरमच्छ यदि अनेक जल के जीव और नाना प्रकार के पक्षी तिन का रूप धरे देव रूपी वाहन तिन पर चढ़े. अनेक योधा रावण के साथी निकसे भामंडल और सुग्रीव पर रावण का अतिक्रोध सो राक्षसवंशी इस से युद्ध को उद्यमी भए रावण को पयान करते अनेक अपशकुन भए तिनका वर्णन सुनो दाहिनी तरफ शल्यकी कहिए सेह मंडल को बांधे भयानक शब्द करती प्रयण का निवारण करे है और गृद्ध पक्षी भयंकर अपशब्द करते आकाश में भ्रमते मानों रावण का क्षय ही कहे हैं और अन्य भी अनेक अाशुकुल भए स्थलके जीव श्राकाशके जीव अति व्याकुल भए क्रूरशब्द करते भए रुदन करते भये सा यद्यपि राचसों के समूह सवही पंडित हैं शास्त्रका विचार जान हैं तथापि शूरवीरता के गर्व से मूढ़ भये महा सेनासहित संग्राम के अनि कर्मके उदयसे जीवोंका जब कान यावे है तब अवश्य For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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