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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुराण ।।६४। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकर एकगज पांच पयादे तीनतुरंग इसका नामपत्ति और तीनस्थ तीनगज पंद्रह पयादे नव तुरंग इसको सेनाकहिये और नव रथ नव गज पैंतालीस पयादा सत्ताईस तुरंग इसे सेना मुख कहिये और संचाईस रथ सत्ताईस गज एक सौ पैंतीस पयादा इक्कासी अश्व इसे गुल्म कहिये और इक्यासीरथ इक्यासी गज चार से पांच पयारे दोसोतैंतालीस अश्व इसे वाहिनी कहिये और दोयसै तियालीस रथ दोयसौ तिया लीस गज बारासौ पंद्रह पया दे सात सौ उनतीस घोडे इसे प्रतिनाकहिये और सातसौ गुणनीय रथ सात गुणतीसगज छत्तीस पैंतालीसपयाद इक्कीस सौ सतासी तुरंग इसे चमू कहिये और इक्कीस सतासीरथ इक्कीससौ सत्यासीगज दसहजार नौसेपैंतीसपयादे और पैंसठसी इकसठ तुरंग इसे अनीकिनी कहिये सो पत्ति नतिक आठ भेदभऐ सोयहांलों तो तिगुने २ बढ़े और दश अनीकिनीकी एक चौहिणी हो उसका वरणन रथ इक्कीसहजार आठसौ सत्तर और गज इक्कीसहजार पाठ से सत्तर पियादे एकलाख नौहजार तीनसे पचास और घोड़े पैंसठहजार बैसोइस यह एक अक्षौहिणी का प्रमाणभया ऐसी चारहजार अचौहिंगी कर युक्त जो रावण उसे प्रति बलवान जानकर भी किह कन्धापुरके स्वामी सुग्रीवकी सेना श्रीराम के प्रसाद से निर्भय रावण के सन्मुख होती मई श्रीराम की सेनाको अतिनिकट आए हुए नाना पत्तको घरें जो लोक सो परस्पर इस भांति बार्ता करते भए देखो रावणरूप चन्द्रमा विमानरूप जे नक्षत्र तिनके समूहका स्वामी और शास्त्रमें प्रवीण सो पर स्त्री की इच्छारूप जे बादल तिनसे आवादितभया है जिसके महाकांतिकी घरणहारी अठारह हजार राणी तिनसे तो तृप्त न भया और देखो एक सीताके अर्थ शोक व्याप्त भयहि अब देखिये राचस | For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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