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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्य पराव TECO । उसदीपके समीप मनोग्यस्थल देख जनके तीर सेनासहित तिष्ठा जैसे नंदाश्वरद्वीपके विषे दे तिष्ठे विभीषणकोप्रायासुन बानखशियोंकी सेना कंपायमानभई जैसे शीतकालमें दलिद्री कांपे लचमशाने सागगवर्त धनुष और सूर्यहासखडग ही तरफ दृष्टिधरी और रामने बजावर्त धनुष हाथ लिया और सब मंत्री भेले होय मंत्र करतेभए जैसे सिंहसे गज उरे तैसे विभीषणसे बानरवंशीडरे उसही समय विभीषणने श्रीरामके निकद विचक्षण द्वारपाल भेजासो रामपे प्राय नमस्कारकर मधुरवचन कहताभया है देव इन दोनों भाइयों में जब से रावण सीतालायातबहीसे विरोधपडा और आज सर्वथा विगडगई इसलिये श्रापके पायनायाहै श्राप के चरणारविन्दको नमस्कार पूर्वक विनतीकरे है कैसाहै विभीषण धर्म कार्यविषे उद्यीहै यह प्रार्थना करी है कि आप शरणागत प्रतिपालहो में तुम्हाराभक्त शरणे आया हूं जो आज्ञाहोय सो ही करूं आप कृपा करने योग्यहैं यह द्वारपालके बचन सुन रामने मंत्रियोंसे मंत्र किया तब रामसे सुमतकांत मंत्री कहताभया कदाचित रावण ने कपटकर भेजाहोय तो इसका विश्वास क्या राजावोंकी अनेक चेष्ट हैं और कदाचित कोई बातकर आपसमें कलुषहोय फिर मिलिजांय कुल और जल इनके मिलनेका आश्चर्य नहीं तब महाबुद्धिवान मतिसमुद्र बोला इनमें विरोध तो भया यह बात सबके मुख से सुनिए है और विभीषण महा धर्मात्मा नीतिवान है शास्त्ररूप जनसे धोयाहै चित्त जिसका महा दयावानहै दीनलोकोंपर अनु ग्रह करे है और मित्रता में दृढ़है और भाईपने की बात कही सो भाईपनेका कारण नहीं कर्मका उदय जीवों के जुदा २ होयह इन कर्मों के प्रभावकर इसजगत में जीवों की विचित्रताह इस प्रस्ताव में अब । एक कथाहै सो मुनो एक गिरि एकगोभूत ये दोऊ भाई ब्राह्मणथे सो एक गजा सूर्यमे घथा उस के For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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