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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पुराण ॥५॥ अंगीकार करा ब्रह्मदत्त राजाके घर आहार लिया चौदह वर्ष तप करके केवल ज्ञान उपजाया । चौंतीस अतिशय तथा अाठ प्रातिहार्य प्रकट भये, भगवान के नब्बे गणधर भए और लाख मुनिभए॥ ___ अजितनाथके पुत्र विजयसागर जिनकी ज्योति सूर्य समान है उनकी राणी सुमंगला उन के पुत्र सगर द्वितीय चक्रवर्ती भए । नवनिधि चौदह रत्न आदि इनकी विभूति भरत चक्रवर्तीके समान जानन , उनके समयमें एक बृत्तान्त भया सो हे श्रेणिक तुम मुनो । भरत क्षेत्रके विजयार्थकी दक्षिण श्रेणीमें चक्रवाल नगर तहां राजा पूर्णघन विद्याधरोंके अधिपति महा प्रभाव मंडित विद्यावलकर अधिक थे उसने तिलक नगर के राजा सुलोचन की कन्या उत्पलमती विवाह के वास्ते मांगी राजा सुलो चनने निमित्त ज्ञानी के कहने से उसको न दी और सगर चक्रवर्ती को देनी बिचारी, तब पूर्ण घन सुलोचन पर चढ़ श्राए सुलोचन के पुत्र सहसू नयन अपनी बहिन को लेकर भागे और बन छिप रहे । पूर्णघन ने युद्ध में सुलोचन को मार नगर में जाय कन्या ढूंढ़ी परन्तु न पाई तब अपने नगर को चले गये, सहसू नयन बाप का बध सुन पूर्णमेघ पर क्रोधायमान भए । परन्तु कुछकर नहीं सके गहरे बनमे घुसे रहे, वह बन सिंह व्याघ्र अष्टापदादि से भराहै पश्चात् चक्रवर्ती को एक मायामई अश्व लेय उड़ा सो जिस बनमें सहमू नयन ये तहां आये । उत्पलम्ती ने चक्रवर्ती को देखकर भाई को कहा कि चक्रवर्ती अापही यहां पधारें हैं । तव भाई ने प्रसन्न होकर चक्रवर्ती को बहिन परणाई यह उत्पलमती चक्रवर्ती की पटराणी स्त्री रत्न भई और चक्रवर्ती ने कृपा कर सहस्र नयनको दोनों श्रेणी का अधिपति किया । सहस्र नयन ने पूर्णघन पर चढ़कर युद्ध में पूर्णघन को मारा और बाप For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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