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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्न | मेरा गमन योग्य नहीं जो पूछे कि विना बुलाए क्यों आई तो मैं क्या उत्तर दंगी इसलिये रावणने उपद्रव तो || पुराण सुना होयगा सो अब तुम जावो तोहि यहां विलंब उचित नहीं मेरे प्राणनाथ के समीप जाय मेरी तरफ से हाथ जोड़ नमस्कार कर मेर मुखके वचन इसभांति कहियो हे देव एकदिनमो सहित आपने चारण मुनिकी बन्दना करी महा स्तुतिकर और निर्मलजलकी भरी सगेवरी कमलोंकर शोभित जहांजल क्रीडा करी उस समय महा भयंकर एक बनका हाथी बाया सो वह हाथी महाप्रबल आपने क्षण मात्रमें बशकर सुन्दर क्रीडा करी हाथी गर्व रहित निश्चल किया और एक दिन नन्दन बन समान बन विषे में वृत्तकी शाखाको नवावती क्रीडा करती थी सो भ्रमर मेरे शरीरको आय लगेसो आपने अतिशीघ्रता कर मुझे भुजासें उठाय लई और आकुलता रहित करी और एकदिन सूर्यके उद्योत समय में आपके समीप सरोवरके तट तिष्ठती थी तब श्राप शिचा देयबेके काज कछू इक मिसकर कोमल कमलनालकी मेरे मधरसी दोनों और एकदिन पर्वतपर अक जातिके वृक्ष देख में आपकोपछा हे प्रभो यह कौन जातिके वृक्ष महामनोहर तब प्रसन्न मुखकर कही हे देवि ये नन्दनीं वृक्ष हैं और एकदिन करणकुण्डल नामा नदीके तीर आप विराजे थे और मैं भी थी उस समय प्रध्यान्ह समय चारणमुनि अाए सो तुम उठकर महाभाक्तिकर मुनिको आहार दिया वहां पंचाश्चर्य भए रत्नवर्षा कल्प वृक्षों के पुष्पोंकी वर्षा सुगन्धजन की वर्षा शीतल मन्द मुगन्ध पवन दुन्दुभी बाजे और अाकाश विषे देवों ने यह ध्वनि करी धन्य ये पात्र धन्य ये दाता धन्य दान, ये सब रहस्यकी बात कही और चूडा मणि सिरस उतार दिया जो इसके दिवानेसे उनको विश्वास आवेगा और यह कहियो में जानूं हूं आप । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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