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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६५९ पद) अति दया उपजी प्रमदनामा उद्यान जहां सीता विराजे है वहां हनुमान गया उस बनकी सुन्दरता देखता भया नवीनजे बलों के समूह तिनसे पूर्ण और तिनके लाल पल्लवसोहे हैं मानों मुन्दर स्त्रीके कर पाव । ही हैं और पुष्पोंकेगुग्छों पर भ्रमर गुजार करें हैं और फलों से शाखा नम्रीभूत होय रही हैं और ॥ पवन से हालें हैं कमलों कर जहां सरोवर शोभित हैं और देदीप्य मान वेलोंसे वृक्ष वेष्ठित हैं मानों वह वन देववन समान है अथवा भे.गभूमि समान है पुष्पोंकी मकरन्दसे मंडित मानों साक्षात नंदन बनहै अनेक अद्भुत ताकर पूर्ण हनूमान कमल लोचनबनकी लीला देखतासंतासीता के दर्शन निमित्त श्रागे गया चारों तरफ़ बन में अवलोकन किया सो दूर ही से सीता को देखी सम्यक दर्शन सहित महा सती उसे देख कर हनूमान मनमें चितवता भया यह राम देवकी परम सुन्दरी महा सती निर्धूम अग्नि समान असुवन से भर रहे हैं नेत्र जिसके सोच सहित बैठी मुख से हाथ लगाए सिरके केश बिखर रहे है कृशहै शरीर जिसका सो देखकर हनुमान विचारताभया । धन्य रूप इस माताका लोक विष जीते हैं सर्वलोक जिसने मानों यह कमलसे निकस लक्ष्मीही विराजे है दुखके समुद्रमें डूब रही है तोभी इस समान और कोई नारी नहीं मैं जैसेहोय तैसे इसे श्रीरामसे मिलाऊं इसके और रामके काज अपना तनहूँ इसका और रामका विरह न देखें यह चितवनकर अपना रूप फेर मन्द २ पांव धरता हनूमान आगे जाय श्रीरामकी मुद्रिका सीताके पास डारी सो शीघ्रही उसे देख रोमांचहोय अाएऔर कछू इक मुख हर्षितभा सो समीप बैठीथी जो नारी वे इसकी प्रसन्नताके समाचार जायकर रावणको कहती भई सो वह तुष्टायमानहाय इनको बस्त्ररत्नादिक देताभया और सीताको प्रसन्न वदन जान कार्य For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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