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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पमा वृत्तोंकी न होय अयवा मेरेशरीरकी भी ऐसी सुगन्ध नहीं यह सीताजी के अंगकी सुगन्धहोय तथा Mreen कोऊ देव पायाहोय ऐसा सन्देह लक्ष्मणको उपजा सो यह कथा राजा श्रेगिक सुन गौतम स्वामी से पूछता भया हे प्रभो जिस मुगन्ध कर. बासुदेवको आश्चर्य उपजा सो वह सुगव काहे की तब गौतम गणधर कहते भए कैसे हैं गौतम सन्देहरूप तिमिर दूर करनेको सूर्य हैं सर्वलोसकी चेष्टाको जाने हैं पापरूप रजके उड़ावनेको पवन गौतम कहे हैं हे श्रेणिक द्वितीय तीर्थंकर श्रीअजितनाथ. तिनके समोशरणमें मेघवाहन विद्याधर रावण का वडा शरणे आया उसे राक्षसों के इंद्र महा भीमने । त्रिकूटाचल पर्वतके समीप राजसदीप वहां का नामा नगरी सो कृपाकर दई और यह रहस्य की बात कही हे विद्याधर सुन भरत चैत्रके दत्तिणदिशा की तरफ लवण समुद्र के उत्तरकी ओर पृथिवी । के उदर विषे एक अलंकारोदय नामा नगरहेमो अद्भुत स्थान है और नानाप्रकाररत्नोंकी किरणों । से मंडितहै देबोंको भी आश्चर्य उपनावे तो मनुष्योंको क्याबात भूमिगोचरियोंकोतो अगम्यही है और विद्याधरोंको भी प्रतिविषमहै चितवनमें न मावे सर्व गुणों से पूर्ण है जहां मणियोंके मंदिरहै परचक्र से श्रागोचरहै सो कदाचित तुमको अथवा तेरेसन्तानके राजाओंको लंकामें परचक्रका भय उपजे तो अलकारोदयपुरमें निर्भय भए तिष्ठियो इसे पताललंका कहे हैं ऐसाकहकर महाभीम बुद्धिमान राक्षसोंके इंद्र ने अनुग्रहकर रावणके बड़ोंको लंका और पाताललंका दई और राक्षस द्वीप दिया सो यहां इनके वंश में अनेक राजाभए बड़े २ विवेकी व्रतधारी भए सो रावण के बडे विद्याधर कुल विष उपजे हैं देव नहीं । विद्याधर और देवोंमें भेदहै जैसे तिलक और पर्वत कर्दम और चन्दन पाषाण और रत्नोंमें बडा भेद। For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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