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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकार के धान्य और महारस के भरे फल. और पौड़े सांठे इत्यादि अनेक वस्तुओं कर वह वन पूर्ण नाना प्रकार के वृक्षः नाना प्रकार की बेल नाना प्रकार के फल फूल तिन कर. बन अति सुन्दर.मानों दूजा नन्दनवनही है सो शीतख मन्द सुगन्ध पवनकर कोमल कोपल हालें सो ऐसा सोहे मानों यह क्न राम के पायो कर हर्ष कर नृत्य कर है और सुगन्ध पवन कर उठी जो पुरुषों की रजःसो इनके अंग से श्राय लगे सो मानों अटबी प्रालिंगन ही करे है और भ्रमर गार करे हैं सो मानों श्रीराम के पधारने का प्रसन्न भया वन गानही करे है, और महा मनोज्ञ गिरोंके नीझरनों के बांटेयों के उछरिबे के शब्दकरः मानों हंसेही है और भैरुण्ड जाति के पक्षी तथा हंस सारिस कोयल मयर सिंबांण कुरुचि सूत्रा मैनाकपोत भारद्वाज इत्यादि अनेक पक्षियोंके ऊंचेशब्द होयरहे हैं सो मानों श्रीराम लक्ष्मण सीताके आयबेका अादरी करे हैं औरमानों पक्षी कोमल बाणीकर ऐसा बचन कहे हैं कि महाराज भले ही यहां पात्रो और सरोवरों में साझेदःश्याम अरुण कमल फूल. रहे हैं सो मानों श्रीराम के देखने को कौतूहल से कमलरुप नेत्रों कर देखने को प्रवरते हैं और फूलों के भारकर नम्रीभूत जो बृक्ष सो मानो रोम को नमे हैं और सुगन्ध पवन चले है सो मानों वह वन रामके प्रायवे से अानन्द के स्वांस लेय है, सो श्रीराम सुमेरु कैसे सौमनस बन समान बनको देखकर जानकी से कहते भए कैसी है जानकी फले कमल. समान हैं नेत्र जिसकेपति कहे है हे प्रिये देखो यह वृक्ष बेलोंसे लिपटे पुष्पोंके गच्छोंकर मण्डित मानों गृहस्थ समान ही भासे हैं और प्रियंगु की बेल बौलसरी के वृक्ष से लगी कैसी शोभे है जैसी जीप दया-जिन धर्म से एकताको धरे सोहे और यह माधवीलता पवनकर चलायमान जे पल्लव उन कर For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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