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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराण मन्द मम्द चरणोंको धरती महा लयको लिये गावतीगीत अनुसार भावको वतावती अद्भुत नृत्य करती महा शोभायमान भोसती भई और असुर कृत उपद्रव को मानो सूर्य देख न सका सो अस्तभया और संध्याभी प्रकठ होय जाती रही आकाश में नक्षत्रों का प्रकाश भया दशों दिशामें अन्धकार फैलगया उस समय असुरकी मायासे महा रौद्र भूतोंके गण हड हउ हँसतेभये महा भयंकर हैं मुख जिनके और राक्षस खोटे शब्द करतेभए और मायामई स्यालनी मुखसे भयानक अग्नि की ज्वाला काढ़ती शब्द बोलती भई और सैकड़ों कलेवर भयकारी नृत्य करतेभये, मस्तक भुजा जंघादि अंगोंकी बृष्टि होती भई और दर्गन्ध सहित स्थल बंद लोहकी बरसतीभई और हाकिनी नग्न स्वरूप लाबें होठ हाडों के शाम | रण पहिरे करहै शरीर जिनके हाले हैं स्तन जिनके खड़ग हैं हाथ में जिनके वे दृष्टि मे श्रावती भई और सिंह व्याघादिक कैसे मुख तप्त लोह समान लोचन हस्त में त्रिशूल घरे होंठ डसते कुठिल हैं भौंह जिनकी कठोर हैं शब्द जिनके ऐसे अनेक पिशाच नृत्य करतेभए पर्वतकी शिला कम्पायमान भई और भूकम्प भया इत्यादि चेष्टा असुरने करा सो महामुनि शक्लभ्यानमें मग्न न जानतेभए ये चेष्टा देख जानकी भयको प्राप्तभई पतिके अंग से लगगई तब श्रीराम कहतेभए हे.देवी भय मतकर सर्व विघ्नके हरणहारे जे मुनिके चर्ण तिनका शरपगहा ऐसा कहकर सीताको मुनिके पायन मेल श्राप लक्षमणसहित धनुष हाथ में लिये महाबली मेघसमान गरजे धनुष के चढ़ायवेका ऐसा शब्दभया जैसा वज्रपातका शब्दहोय तब वह अग्निप्रभ नामा असुर इन दोनों वीरोंको बलभद्र नारायण जान भागगया उसकी सर्वचेष्टा विलाय || गई श्रीराम लक्षमणने मुनिका उपसर्ग दूरकिया तत्काल देशभूषण कुलभूषण मुनियों को केवल उपजा। For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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