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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परपणा एक उत्तरश्रेणी इन दोनों श्रेणियों में विद्याधर बसे हैं दक्षिणश्रेणी की नगरी पचास उत्तर श्रेणी की साठ एक एक नगरी को कोटि कोटि ग्राम लगे हैं और दस योजन से ऊपर दस योजन जाइये तहां गंध किन्नर । देवों के निवास हैं और पांच योजन ऊपर जाइये तहां नव शिखर हैं उन में प्रथम सिद्धकूट उस में भगवान् । के अकृत्रिम चैत्यालय हैं और देवों के स्थान हैं, सिद्धकूट पर चारण मुनि आयकर ध्यान घरे हैं विद्याधरों। की दक्षिणश्रेणी की जो पचास नगरी हैं उन में रत्नपुर मुख्य है और उत्तरश्रेणी की जो साठ नगरी हैं । उन में अलकावती नगरी मुख्य है इस विद्याधरों के लोक में स्वर्ग लोक समान सुख है सदाउत्साह ही प्रवृते है, नगरों के बड़े बड़े दरवाजे, और कपाट युगल, और सुवर्ण के कोट, गंभीर खाई,और बन उपबन । वापी कूप सरोवरादि से महा शोभायमान हैं। जहां सर्व ऋतु के धान और सर्व ऋतु के फल फल सदा। पाइये हैं जहां सर्व औषधि सदा पाइये हैं जहां सर्व काम का साधन है, सरोवर कमलों से भरे जिन में हंस क्रीडा करे हैं, और जहां दधि दुग्ध घृत मिष्टान्नों के झरने वहै हैं, वापी काओं के मणि सुवर्ण के सिवान (पौड़ी) हैं और कमल के मकरन्दों से शोभायमान हैं, जहां कामधेनु समान गायहैं और पर्वत समान अनाज के ढेर हैं और मार्ग धूल कंटकादि रहित हैं, मोटे वृक्षों की छाया है महा मनोहर जल के लिवाण हैं। चौमासे में मेघ मनवांछित बरसे हैं और मेघों की श्रानन्दकारी ध्वनि होय है, शीत काल में शीत की विशेष बाधा नहीं और ग्रीष्म ऋतु में विशेष प्राताप नहीं, जहां छै ऋतु के विलास हैं, जहां स्त्री श्राभूषण मंडित कोमल अंगवाली हैं और सर्व कला में प्रवीण पट् कुमारीका समान प्रभावाली हैं कईएक || तो कमल के गर्भ समान प्रभा को धरे हैं, कईएक श्यामसुन्दर नील कमल की प्रभा को धरे हैं, कईएक For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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