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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुराण ४५२१ 1 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुन्दर उपवनोंकर मंडित जिनमंदिरोंसे शोभित स्वर्गसमान निरंतर उत्सवका भरा लक्ष्मी का निवास है । सो श्रीरामलक्षमण और सीता नलकूबर नामा नगरके परम सुन्दर बनमें आय तिष्ठे कैसा है वह बन फलपुष्पों से शोभित जहां भूमर गुंजार करे हैं और कोयल बोले हैं सो निकट सरोवरीपर लक्ष्मण निमित्त गए सो उसी सरोवरीपर क्रीडाके निमित्त कल्याणमाला नाम राज्य पुत्री राजकुमार . कामे किये आई थी कैसा है राजकुमार महारूपवान नेत्रोंका हरणहारा सर्वको प्रिय महा विनयवान क. तिरूप निम्रनोके पर्वत श्रेष्ठ हाथीपर चढ़ा सुंदर प्यादे लार जो नगरका राज्य करे सो सरोवरीके तीर लक्ष्मणको देख मोहितभया कैसा है लक्ष्ममा मीलकमल समान श्याम सुंदर लवणोंका भरण• हारा सो राजकुमार... एक मनुष्यको श्राज्ञाकरी कि इनको लेखावो सो वह मनुष्य जायकर हाथ जोड नमस्कार कर कहताभया हे वीर यह राजपुत्र आपसे मिला चाहे है सो पधारिये तब लक्ष्मण राजकुमार के समीप गए सो हाथी से उतरकर कमल तुल्य जे अपने कर तिनकर लक्षमणका हाथ पकड तम्बू में ले गया एक आसनपर दोनों बैठे राजकुमार पूछताभया आप कौन हो कहांसे आये हो तब लक्ष्मणने कही मेरे बडे भाई मेरोवन | एकदा न रहे सो उनके निमित्त अन्नपान सामग्रीकर उनकी आज्ञालेय तुमपर आऊंगा तब सब बात कहूंगा यह बात सुन राजकुमारने कही कि रसोई यहांही तैयारभई है सो यहांही तुम और वे भोजनको तब लक्ष्मणकी आज्ञापाय सुन्दर भातदाल नाना विधिव्यंजन नवीनघृत कपूरादि सुगन्ध व्यसहित दुग्ध और नाना प्रकार पीनेकी बस्तु मिश्री के स्वाद जिसमें ऐसे लाडु और पूरी सांकली इत्यादि नानाप्रकार भोजनकी सामग्री और वस्त्राभूषण माला इत्यादि अनेक सुगंध नामा For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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