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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घन ॥४०॥ | रोझन के समह तिनकर भग्न भये हैं पल्लवों के समूह जहां और नाना प्रकार के जे पक्षियोंके समूह तिनके जो कर शब्द उनकर बन गूजरहा है और बन्दरों के समूह तिनके कूदनेकर कम्पायमान हैं वृक्षों की शाखा जहां और तीव्र वेगकों धर पर्वत से उतरती जे नदी तिनकर पृथिवी में पड़गयाहै दहाना जहां और वृक्षों के पल्लवों कर नहीं दीखे है सूर्य की किरण जहां और नानाप्रकार के फलाल तिन कर भरा अनेक प्रकारकी फैलरही है सुगन्ध जहां नानाप्रकारकी जे औषधि तिनकरिपूर्ण और बनके जेधान्य तिन कर पूरित कहीं एक नीलकहीं एक पीतकहीं एक रक्त कहीं एक हरित नाना प्रकार वर्णको धरेजोबन उसमें दोनोंवीर प्रवेश करतेभये चित्रकूट पर्वत के महामनोहरजेनीझरने तिनमें क्रीडाकरते बनकी अनेक सुन्दरवस्तु देखते परस्पर दोनोंभाई वातकरते बनके मिष्टफल प्रास्वादन करते किन्नर देवोंके भी मनको हरें ऐसा मनोहर गान करते पुष्पोंके परस्परप्राभूषण बनावते सुगन्ध द्रव्य अंगमें लगावते फूलरहे हैं सुन्दर नेत्र जिनके महा स्वछन्द अत्यन्त शोभाके धारणहारे सुरनर नागोंके मनकेहरणहारे नेत्रोंको प्यारे उपवनकी न्याई भीमबनमें रमतेभए अनेकप्रकारके सुन्दरजे लतामंडप तिनमें विश्रामकरते नानाप्रकारकी कथा करते विनोद करते रहस्य की बातें करते जैसे नन्दन वनमें देव भ्रमण करें तैसे अति रमणीकलीला से वन विहार करते भये । ___अथानन्तर साढेचार मास में मालव देश में पाए सो देश अत्यन्त सुन्दर नानाप्रकारके धान्योंकर शोभित जहां ग्राम पट्टनघने सो केतीक दूर आयकर देखें तो वस्ती नहीं तब एक बटकी छाया में बैठ दोनों भाई परस्पर बतलावतेभये कि काहेसे ये देश ऊजड़ दीखे है नानाप्रकारके क्षेत्र फल रहे हैं और मनुष्यनहीं | नानाप्रकारके वृक्ष फल फूलन कर शोभित हैं और पौंडे सांठे के बाद बहुत हैं और सरोवरों में कमल फूल | For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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