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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ॥३८॥ इन्द्र ने इन्दाणी को भगवान के लावने के अर्थ माता के पास भेजी, इन्द्राणीने जाकर नमस्कारकर माया मई बालक माताके पास रखकर भगवान को लाकर इन्द्रके हाथमें दिया, भगवान का रूप त्रैलोक्यके रूपको जीतने वालाहै। इन्द्रने हजार नेत्रोंसे भगवान के रूपको देखा तो भी त्प्त नभयो । भगवान को सोधर्म इन्द्र गोद में लेकर हस्ती पर चढ़े, ईशानइन्द्र ने छत्र धरे, और सनत्कु मार महेंद्र चमर ढोरते भए, और सकल इन्द्र और देव जयजयकार शब्द उच्चारते भए फिर मेरुपर्वतके शिखरपर पांडुक शिलापर सिंहासन ऊपर पधारे अनेक बाजोंका शब्द होता भया जैसा समुद्र गरज. और यक्ष किन्नर गन्धर्व तुंबरु नारद अपनी स्त्रियों सहित गान करते भए, वह गान मन और श्रोत्रण (कान) का हरण हाराहै, जहां बीन आदि अनेक वादित्र बाजते भए, अप्सरा अनेक हाव भाव कर नृत्य करती भई और इन्द्र स्नानके अर्थ क्षीर सागरके जलसे स्वर्णकलश भर अभिषेक करनेको उद्यमी भए, उन कलशोंका एक योजन का मुखहै और चार योजनका उदर है अाठ योजन ओंड [ डंघ | और कमल तथा पल्लवसे ढके हैं असे कलशों से इन्द्र ने अभिषेक कराया, विक्रिया ऋद्धि की सम । थता से इन्द्र ने अपने अनेक रूप किये और इन्द्रों के लोकपाल सोम वरुण यम कुवेर सर्वही अभिः । षेक करावते भए, इन्द्राणी आदि देवी अपने हाथो से भगवान के शरीर पर सुगन्ध का लेपन | करती भई, इन्द्राणियों के हाथ पल्लव (पत्र) समान हैं, महागिरि समान जो भगवान् तिनको मेघः | समान कलशसे अभिषेक कराय गहना पहरावने का उद्यम किया, चांद सूर्य समान दोय कुण्डल | कानों में पहराये, और पद्मराग माण के आभूषण मस्तक विषे पहराए जिनकी कांति दशों दिशा For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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