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पद्म
पुरा
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गई फिर सचेत होय पातके भरे नेत्रों से पुत्र को देखा और हाथ से स्पर्शा और माता विदेहा भी पुत्र को देख मूर्च्छित हो गई फिर सचेत होय मिली और रुदन करती भई, जिसके रुदन को सुनकर तिर्यों को भी दया उपजे हाय पुत्र तू जन्मतही उत्कृष्ट बैरीसे हरागया था तेरे देखनेको चिन्तारूप अग्नि कर मेरा शरीर दग्घ भया था सो तेरे दर्शन रूप जल से सींचा शीतल भया और धन्य है वह राणी पुष्पवती विद्याधरी जिसने तेरी बाललीला देखी और क्रीड़ा कर धूसरा तेरा अङ्ग उरसे लगाया और मुख चूमा और नवयोवन अवस्था में चन्दन कर लिप्त सुगन्धों से युक्त तेरा शरीर देखा ऐसे शब्द माता विदेहा ने कहे और नेत्रों से अश्रुपात झरे और स्तनों से दुग्ध भरा और विदेहाको परम आनन्द उपजा जैसे जिनशासनकी सेवक देवी श्रानन्दसहित तिष्ठे तैसे पुत्रको देख सुखसागर में तिष्ठी एकमास पर्यन्त यह सर्व अयोध्या में रहे फिर भामंडल श्रीरामसे कहते भए कि ह देव इस जानकीके तिहारोही शरण है धन्य हैं भाग्य इसके जो तुम सारिखें पति पाए ऐसे कह बहिनको छाती से लगाया और माता विदेहा सीता को उर से • लगाकर कहती भई हेपुत्री तू सासू सुसर की अधिक सेवा करियो और ऐसा करियो कि जो सर्व कुटुम्बमें तेरी प्रशंसा, होय सो, भामंडल ने सबको बुलाया जनकका छोटा भाई जो कनक उसे मिथिलापुरी का राज्य सौंपकर जनक और विदेहा को अपने स्थानकलेगया यह कथा राजाश्रेणिक से गौतम स्वामी कहे हैं कि मगधदेश के
पति तू धर्मका माहात्म्य देख जो धर्म के प्रसादसे श्रीरामदेवके सीता सारिखी स्त्री भई गुणरूपकर पूर्ण जिसके भामंडलसा भाई विद्याधरोंका इन्द्र और देवाधिष्ठित वें धनुष सा रामने चढ़ायें और जिनके लक्ष्मण सा भाई सेवक यह श्रीरामका चरित्र भामंडल के मिलापका वर्णन जो निर्मल चित्तहोय सुनें उसे मन वांछित फलकी सिट दोष और नीरोग शरीरदोष सूर्य समान प्रभाको पावें ॥ इति तीसवांपर्व संपूर्णम् ।
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