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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पुरान www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शरीर और भोगों से उदास होय वैराग्य अंगीकार करना विचारा और भामंडल को कहताभया हे पुत्र तेरे जन्मदाता माता पिता ते रे शोकसे महादुःखी तिष्ठे हैं सो उनको अपना दर्शनदेय तिनके नेत्रोंको आनन्द उपजाय सो स्वामीसर्वभूतहित मुनिराज रोजा दशरथ से कहे हैं यह राजा चन्द्रगति संसार का स्वरूप असार जान हमारे निकट चाय जिन दीक्षा धरता भया, जो जन्मा है सो निश्चय से मरेगा और जो मूवा है सो अवश्य नया जन्म धरेगा यह संसार की अवस्था जान चन्द्रगति भव भ्रमण से डरा ये मुनि के वचन सुनकर भामण्डल पूछताभया हे प्रभो चन्द्रगति का और पुष्पवती का मुझपर अधिक स्नेह काहे से भया, तब मुनि बोले, ये पूर्वभवके तेरे माता पिताहैं सो सुन || एक दारूनाम ग्राम वहां ब्राह्मण विमुचि उस के agat शास्त्री और अतिभूत पुत्र उसकी स्त्री सरसा, और एक कयान नामा परदेशी ब्राह्मण सो अपनी माता ऊर्जा सहित दारूग्राम में आया सो पापी अतिभूत की स्त्री सरसाको और इनके घर के सारभूत धनको ले भागा सो श्रतिभूत महादुःखी होय उसके ढूंढनेको पृथिवीपर भटका और इसका पिता के एक दिन पहिले दक्षिणा अर्थ देशांतर गया था सो घर पुरुषों विना सूना होगया जो घरमें थोड़ा बहुतधन रहा था सो भी जाता रहा और प्रतिभूत की माता अनुकोशा सो दलिद से महा दुखी यह सब वृतांत विमुचिने सुना कि घरका धनभी गया और पुत्रकी बहू भी गई और पुत्र ढूंढनेको निकसा है सो नजानिये कौन तरफ़ गया तब विमुचि घर आया और अनुकोशाको यति विल देख घीर्य्य वन्धाया । कयान की माता ऊर्जा सभी महादुःखिनी पुत्रने अन्यायकार्यं किया उससे अतिलज्जायमान सो उसकोभी दिलासा करी कि तेरा अपराध नहीं और आप विमुचि पुत्रके ढूंढने को गया सो एक सर्वारिनाम नगरके बनमें एक अवधि For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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