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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्य ॥४३२॥ देव और चक्रवर्ती बलभद्र नारायण सो भूमि गोचरियोंमें उपजे तिनको तुम कौन भांति निंदोहो अहो विद्याधरों पंच कल्याणककी माति भूमिगोचरियों होके होयहै विद्याधरों में कदाचित किसीके बुम ने देखी इक्ष्वाकु बंशमें उपजे बडे बडे राजा जो षट संड पृथिवीके जीतनहारे तिरके चक्रादि महा रत्न बही शुद्धिके स्वामी चक्र धारी इन्दादिककर माई है उदार कीर्ति जिनकी ऐसे गुणोंके सागर कृत कृत्य पुरुष ऋषभदेवके वंश के बरे २ प्रश्विीपति वा भूमिमें अनेक भए उसही बंशमें राजा अरण्य, बड़े राजा भए तिनके राणी सुमंगला उसके दसरथ पुत्र भए जे क्षत्री धर्म में तत्पर लोकों की रचा निमित्त अपना प्राण त्याग करतेन शंके जिनकी भाज्ञा समस्त लोक सिर परधरजिनकी चार पटरानी मानों चार दिशाही हैं सर्व शोभाको धेरै गुणोंकर उज्ज्वल और पांच सौ और गनी मुखका जीताहै चन्द्रमा जिन्होंने जे नाना प्रकारके शुम चरित्रों कर पतिका मन हर हैं और राजा दशरथके राम बड़े पुत्र जिनको पद्म कहिये लक्षमीकर मंडित है शरीर जिनका दीप्ति कर जीताहै सूर्य और कीर्ति कर जीताहै चन्द्रमा स्थिरताकर जीताहै सुमेरु शोभा कर जीता इन्द्र शूरवीरता कर जीते हैं सर्व सुभट जिन्होने सुन्दरहैं चरित्र जिनके जिनका छोटा भाई लक्षमण जिसके शरीरमें लक्षमीका निवास जिस के धनुषको देख शत्रु भयकर भाज जावें और तुम विद्याधरोंको उनसे भी अधिक बतावो हो सो काक भीतो आकाशमें गमन करे हैं तिनमें क्या गुणहें और भूमिगोचरियों में भगवान तीर्थकर उपजे हैं तिनको इन्द्रादिक देव भूमिमें मस्तक लगाय नमस्कार करे हैं फिर विद्याघरों की क्या बात ऐसे बचन जब जनक ने कहे तब वे विद्याधर एकांतमें तिष्ठकर आपसमें मन्त्रकर जनकको कहते भए हे भूमिगोचरियोंके नाथ For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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