SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३३० पद्म सोप्राणों से रहितहोय गई होय, वहभोरी कदाचित् गंगा में उतरीहोय वहां नानाप्रकारके ग्राह सो पानी में बहगई होय, अथवा वह अतिकोमल तनु डाभ की अणी कर विदारेगये होंय चरणजिसकेसो एकपेंड भी पग | धरने कीशक्ति नहीं थी सो न जानिये क्या दशा भई अथवा दुःख से गर्भपात भया होय औरकदाचित् वह जिन धर्म की सेवनहारी महाविरक्तभाव होय आर्याभई ऐसा चितवन करते पवनञ्जयकुमार ने पृथवी में भ्रमण किया सो वह प्राणवल्लभा न देखी तब विरह कर पीड़ितसर्व जगत् को शून्य देखता भया, मरण का निश्चय किया, न पर्वत विषे न मनोहर वृक्षों विषे न नदी के तटपर किसी ठौर ही प्राणप्रिया विना इसका मन न रमता भया, ऐसा विवेकवर्जित भया जो सुन्दरीकी वार्ता वृक्षों को पूछे भ्रमता भ्रमता भूतरवर नाना बन में अाया वहां हाथी से उतरा औरजैसेमुनि आत्मा का ध्यान करें तैसेप्रिया काध्यान करे फिर हथयार और वक्तर पृथिवी पर डार दिए औरगजेन्द्र से कहतेभए हेगजराज अब तुम वनस्वच्छन्दविहारी होवो हाथी विनयकर निकट खड़ा है आप कहें हैं हे गजेन्द्र इस नदी के तीरमें शल्लकी वन है उस के जो पल्लव सो चरतेविचरो औरयहां हथनियोंके समूह हैं सोतुमनायक होय विचरो कुंवरने ऐसाकहा परन्तु वह कृतज्ञ धनी के स्नेह विषे प्रवीण कुंवरका संग नहीं छोड़ताभयाजैसे भला भाई भाईका संग न छोड़े कुंवर अतिशोकवन्त ऐसे विकल्प करेकिअति मनोहर जोवह स्त्रीउसे यदि न पाऊं तो इसबन विषे प्राणत्यागकरूं, प्रियाहीमें लगाहै मन जिसका ऐसा जो पवनञ्जय उसे बनविषे रात्री भई सो रात्री के चार पहरचार वर्ष समान बीते नाना प्रकार के विकल्पकर ब्याकुल भया ॥ यहां की तो यहकथा और मित्रपिता पै गया सो पिताको सर्व बृतान्त कहा पिता सुनकर परमशोकको प्राप्तभया सबको शोक उपजा और केतुमती माता पुत्रके शोकसे अति For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy