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पुराण ॥३०॥
मातंगमालिनी है जहां मन की भी गम्यतानहीं तोमनुष्यकी क्या गम्यता सखी श्राकाशमार्ग सेजानेको समर्थ है और यह गर्भ के भार से समर्थ नहीं इस लिये सखी इसके प्रेमके बंधन से बंधी शरीरकीछायासमान लारलार चले है अंजनीबनी को अतिभयानक देखकर कांपे है दिशाभूल गई तब बसन्तमाला इसकोअति ब्याकुल जानकर हाथ पकड़कर कहती भई हे स्वामिनीतु डरेमत मेरे पीछे २ चलीा । तब यह सखी के कांधे पर हाथ रख चली जाय ज्यों २ डाभ की अणी चुभे त्यों २ अति खेदखिन्न विलाप करती देह को कष्टसे धारती जल के निझरने जे अति तीव्र वेग संयुक्त बहैं तिनको अति कष्ट से उतरती अपने जे सब स्वजन अति निर्दई तिनको अति चितारती अपने अशुभ कर्म को वारंवार निन्दती वेलों को पकड़ भयभीत हिरणी कैसे हैं नेत्र जिसके अंग विषे पसेव कोघरती काटों से वस्त्र लग लग जांय सो छुड़ावती। लहूसे लाल होगए हैं चरण जिसके शोक रूप अग्नि के दाहसे श्यामता को घरती, पत्र भी हाले तो त्रास को प्राप्तहोती चलायमान है शरीर जिसका बारंबार विश्राम लेती उसे सखी निरंतर प्रियवाक्य कर धीर्य बंधावे सो धीरेधीरे अंजनी पहाड़ की तलहटी तक आई वहां प्रांसभर बैठगई सखी से कहती भई अब मुझमें एकपग धरने की शाक्त नहीं यहांही रहूंगी मरण होय तो होय तब सखी अत्यन्त प्रेम की भरी महा प्रवीण मनोहर वचनों से उसको शांति उपजाय नमस्कार कर कहती भई हे देवी देख यह गुफा नजदीक ही है कृपाकर यहांसे-उठकर वहां सुखते तिष्ठो यहां कूर जीव बिचरे हैं तुझे गर्भकी रक्षाकरनी है इसलिए हठ मतकर एसाकहा तबवह अाताप की भरी सखी के बचनों से और सघनबन के भय से चलने को उठी तब सखी हस्तालंबन देकर उसको विषमभूमि से निकास कर गफा के द्वारपरलेगई। बिना विचारे गुफा में |
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