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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराख था जो पुण्यके योगसे कन्याका विद्युतप्रभ पति होता तो इसका जन्म सफल होता हे बसंतमाला विद्युतप्रभ और पवनंजयमें इतना भेदहै जितना समुद्र और गोष्पदमें भेदहै विद्युतप्रभ की कथा बडे बड़े पुरुषोंके मुखसे सुनी है जैसे मेघके बृन्द की संख्या नहीं तैसे उसके गुणों का पार नहीं वह नव यौवन है । महासौम्य विनयवान देदीप्यमान विद्यावान बुद्धिवानबलवान सर्व जगत चाहे दर्शन जिस का सब यही कहें हैं कि यह कन्या उसे देनी थी सो कन्याके बापने मुनी वह थोड़े ही दिनोंमें मुनि होयगा इसलिये संबंधन किया सो भलान किया विद्युत्प्रमका संयोग एक तणमात्रही भला और क्षुद्र पुरुषकासंयोग बहुतकालभी किस अर्थ यहवार्तामुनकर पवनंजयक्रोध रूपअग्नि करप्रज्वलितभएक्षणमात्र में औरही छायाहोगई रससबिरसागए लालआंखे होगई होंठडसकर तलवार म्यानसे काढ़ीऔरप्रहस्तमिव से कहतेभए इसेहमारीनिन्दा सुहावे है औरयहदासी ऐसेनिंद्यवचन कहे और यहसने सोइन दोनोंकासिरकाट डारूं विद्युत्प्रभ इनके हृदयकाप्यारा है सो कैसेसहाय करेगा यहवचन पवनंजयके सुन प्रहस्तमित्र रोषकर क हता भया हेसखे हेमित्र ऐसे अयोग्य वचन कहनेकर क्या तुम्हारी तलवार बड़ेसामंतोंके सीसपरपडलीअबला अवध्यहैइनपर कैसे पडे यहदुष्टदासी इनके अभिप्राय बिना ऐस कहे हे तुमअाज्ञाकरोतो इसदासी को एकदंड कीचोटसे मारडालूं परन्तुस्त्रीहत्या बालहत्या पशुहत्या दुर्बलमनुष्यकीहत्या इत्यादि शास्त्रमेंबर्जनीयकहीहै ये वचन मित्र के सुनकर पवनंजय क्रोधको भूलगये और भित्रको दासीपरक्रूर देखकर कहते भए । हे मित्र तुमअनेक संग्राम के जीतनेहारे यशके अधिकारी माते हाथियों के कुंभस्थल बिदारनेहारे तुमको दयाही करनी योग्य है और सामान्य पुरुष भी स्त्रीहत्या न करें तो तुम कैसे करो जे बड़े कुल में उपजे | For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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