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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराण ॥२३१६ वज्र पाषाण हल दंड कोण जातिके शस्त्र बांसनके वाण और नाना प्रकार के शस्त्र तिन कर परस्पर अति युद्ध भया परस्पर उनके शस्त्र उनोंने काटेउनके उनोंने काटे अतिबिकराल युद्ध होतेपरस्पर शस्त्रोंके घात से अग्नि प्रज्वलित भई रणमें नाना प्रकारके शब्द होय रहे हैं कहीं मारलो मारलो यह शब्द होय रहे हैं कहीं यक रण २ कहीं किंण २ त्रय २ दम दम छम छम पट पट छस छस दृढ़ २ तथा तट २ चट चट घघ घध इत्यादि शत्रुवों कर उपजे अनेक प्रकारके जेशब्द उनसे रणमन्डल शब्द रूप होगया हाथियों कर हाथी मारेगये घोड़ोंकर घोड़े मारेगये रथों कर रथ तोडेगये पियादयाँ कर पियादे हतगए हाथियों की रंडकर उछलेजेजलके छांटेकर तिन शस्त्र सम्पातकर उपजीथीजो अग्नि सो शान्त भई परस्पर गज युद्धकर हाथियों के दांत टूटपडे गज मोती बिखरगए योधावोंमें परस्परयह आलाप भए हो शूर बीर शस्त्र चला कहां कायर होय रहा है हो भटसिंह हमारेखडगका प्रहारसम्हार हमारेसे युद्ध करयह मूवातू अबकहा जाय है और कोई सूं कोई कहे है तू यह युद्धकला कहां सीखा तरवार का भी सम्हारना न जाने है और कोई कहे है तु इस रणसे जा आपनी रक्षाकर तुक्या यूद्ध करना जाने तेरा शस्त्र मेरेलगा सो मेरी साजभी न मिटी तें वृथा ही धनीकी अजीवका अब तक खाई अब तक तें युद्ध कहीं देखा नहीं कोई ऐसेकहे हैं तू क्यों कांपे है तू थिरताभज मुष्टि दृढ़ राख तेरे हाथ से खड्ग गिरेगा इत्यादि योधावों में परस्पर पालाप होते भए कैसे हैं योधा महा उत्साह रूपहें जिनको मरनेका भय नहीं अपने अपने स्वामी के आगे सुभट भले दिखाए किसी की एक भुजा शत्रुकी गदाके प्रहार कर टूट गईं तोभी एकही हायसे युद्धकररहाहै किसी का सिर टूट पड़ा तो धड़हाँलडे है योधावों के बाणों से बक्षस्थल बिंदारे गए परन्तु मन न चिगे For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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