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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९॥ कला के ग्रहण में चन्द्रमा के समान है, प्रताप में सूर्य समान है. धन सम्पदा में कुबेर के समान है, शूरवीरपनों में प्रसिद्ध है लोक का रक्षक है महा न्यायवन्त है लक्ष्मी कर पूर्ण है गर्व से दूषित नहीं सर्व शत्रुओं का विजय कर बैठाहे तथापि शस्त्र (हथियार) का अभ्यास रखताहै और जो आपसे नमीभूत भये हैं तिनके मान का बदावन हारा है जे आपते कठोर हैं तिन के मान का छेदन हारा है और आपदा विषे उद्वेग नहीं सम्पदा विषे मदोन्मत्त नहीं जिसकी साधुओं में निर्मलरत्न बुद्धि है और रत्न के विषे पापाणावृद्धि है जो दानयुक्त क्रिया में बड़ा सावधान है और ऐसा सामन्त है कि मदोन्मत्त हाथीको कीट समान जाने है और दीन पर दयालु है जिसकी जिन शासन में परम प्रीतिहै धन और जीतब्य में जीर्ण तण समान बुद्धि है दशों दिशा वश करी हैं प्रजा के प्रतिपालन में सावधानहै और स्त्रियों को चर्मकी पुतली के समान देखे हे धनको रज समान गिने है गुणनकर नमीभूत जो धनुष ताही को अपना सहाई जाने है चतुरंग सेनाको केवल शोभा रूप माने है ( भावार्थ ) अपने बल प्राक्रम से राज करे है जिसके राजमें पवनभी वस्त्रादिक को हरण नहीं करे तो ठग चोरों की क्या वात जिसके राज में कर पशु भी हिंसा न करते भये तो मनुष्य हिंसा कैसे करे, यद्यपि राजा श्रेणिक से वासुदेव बड़े होते हैं परंतु उन्होंने बृष कहिये बृषासुरका पराभव कियाहै और यह राजाश्रेणिक वृषकहिये। धर्म ताका प्रतिपालक है इसलिये उनसे श्रेष्ठ है और पिनाकी अर्थात् शंकर उसने राजा दक्ष के गर्व को आताप किया और यह राजा श्रेणिक दक्ष अर्थात् चतुर पुरुषों को आनन्दकारी है इसलिये शंकर से भी अधिक है और इन्द्र के बंश नहीं यह वंश कर विस्ती है और दक्षिण दिशाका दिग्पाल जो For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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