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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पुराण .२०५ पदार्य को कौन जाने इस लिये सर्वज्ञका बचन प्रमाणहै और तैंने कही जो यज्ञमें पशु का वध दोषकारी नहीं सो पशुको बध समय दुःखहोयहै कि नहीं जो दुःखहोय है तो पाप होय है जैसे पारधी हिंसा करे है सोजीवन को दुःख होय है और उस को पाप होय है और तैने कही कि विधाता सर्व लोकका कर्ता है और यह पशयज्ञ के अर्थ बनाए हैं सो यह कथनप्रमाणनहीं भगवान कृतार्थ उनकोसृष्टि बनाने से क्या प्रयोजन और कहोगे ऐसी क्रीड़ा है सो क्रीड़ा तो कृतार्थ नहीं बालक समान जानिए और जो सृष्टि रचे तो आप सारखी रचे वह सुखपिण्ड और यह सृष्टि दुःखरूप है, जो कृतार्थ होय सो करतानहीं और कर्ता है सो कृतार्थनहीं जिसके कछू इच्छाहै सो करे जिन के इच्छा है वे ईश्वर नहीं और ईश्वर विनासमर्थ नहीं | इसलिये यह निश्चय भया जिसके इच्छाहै सोकरने समर्थनहीं और जोकरनेसमर्थ है उसके इच्छा नहीं इस लिये जिसको तुम विधाता कर्त्ता मानो होसो कर्मों कर पराधीन तुम सारखाही है और ईश्वरहै सोअम्तीक है जिस केशरीर नहीं सो शरीर बिना कैसे सृष्टि रचे। और यज्ञ के निमित्त पशु बनाये सो बाहनादि कर्मविषे क्यों प्रबर्ते इसलिये यह निश्चयभया किइस भवसागर में अनादिकालसेइनजीवों ने रागादिभाव कर कर्म उपार्जे हैं तिन कर नाना योनि में भ्रमण करे हैं यह जगत अनादि निधन है किसी का किया नहींसंसारीजीव कर्माधीन हैं और जो तुम यह कहोगे कि कर्म पहले हैं याशरीर पहिले है ? सोजैसेबीज और वृक्ष तैसे कर्म और शरीर जानने बीज से वृक्ष है और वृक्ष से बीज है जिनके कर्म रूप बीज दग्ध भया तिन केशरीररूपवृक्षनहीं और शरीरवृक्षविना सुखदुखादिफल नहीं इसलिये यहात्मा मोक्ष अवस्थामें कमरहित मन इन्द्रियों से अगोचर अद्भुत परमानन्दको भोगे है निराकार स्वरूप अविनाशीहै सो वह अविनाशी For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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