SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुराण www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मय कन्या परणवनेको कन्याको रावण पैलेचले रावण भीम नामा बनमें चन्द्रहास खड्ग साधने को आए और चन्द्रहासकी सिद्धिकर सुमेरुपर्वत के चैत्यालयोंकी बन्दना को गयेथे सो राजामय हलकारों के कहने से भीम नामा वन में श्राए वह बन मानों काली घटाका समूहही है जहां अति सघन और ऊंचे वृक्ष हैं बन के मध्य एक ऊंचा महल देखा मानों अपने शिखरसे स्वर्गको स्पर्शे है रावण ने जो स्वयंप्रभ नामा नवा नगर बसायाथा उसके समीपही यह नगर है राजामयने विमान से उतर कर महलके समीप डेरा किया और वादित्रादि सर्व चाडंबर छोड़कर कैयक निकटवर्ती लोकों सहित मन्दोदरी को लेय महल पर चढ़े सातवें खण में गए वहां रावणकी बहिन चन्द्रनखा बैठी थी चन्द्र नखा मानों साक्षात बन देवीही मूर्तिवन्ती है चन्द्रनखा ने राजामयको और उसकी पुत्री मन्दोदरी को देखकर बहुत आदर किया बड़े कुलके बालकों के यह लचणही हैं बहुत बिनय संयुक्त इनके निकट बैठी तब राजामय चन्द्रनाको पूछते भए कि हे पुत्री तू कौन है किस कारण बन में अकेली बसे है तब चन्द्रनखा बहुत विनयसे बोली मेरा बड़ा भाई रावण है बेला करके उसने चन्द्रहास खड्ग को सिद्ध किया है और अब मुझे खड्गकी रक्षा सौंप सुमेरुपर्वत के चैत्यालयों की बन्दना को गए हैं। मैं भगवान चन्द्रप्रभु के चैत्यालय में तिष्ठं हूं तुम बडे हित सम्बन्धी हो जो तुम रावणसे मिलने हो तो चणइक यहां बिराजो इस भांति इनके बात होयही रही थीं कि रावण श्राकाश मार्ग से एतेजका समूह नजर आया तब चन्द्रनखाने राजामयसे कही कि अपने तेजसे सूर्य के तेज को हरता हुआ यह रावण आया है रावण को देख राजामय बहुत आदर से खड़े हुए और रावण से मिले For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy