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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org MY से दानदेना और दयाभावसे सदा सबको देना और अन्त समय समाधिमरण करना और सम्यकज्ञानकी प्राति किसी उत्तम जीवहीको होय है कैएकोंके तो विद्या दस वर्षों में सिद्धि होयहै कैएकको एक मास में कैएकको क्षणमात्रमें यह सब कमीका प्रभाव जानोरातिदिन धरतीपर कोई भूमण करो अथवा जल में प्रवेश करो तथा पर्वतके मस्तकसे परोअनेक शरीरके कष्ट करो तथापि पुण्यके उदय बिना कार्य सिद्धि नहीं होता जे उत्तम कर्म नहीं करेहै वे वृथा शरीर खोवे हैं इसलिये सर्व आदरसे प्राचार्यों की सेवा करके पुरुषों को सदा पुण्यही करना योगहै पुण्य बिना कहांसे सिद्धि होय । पुण्य का प्रभाव देख कि थोड़े ही दिनोंमें और मन्त्र विधि पूर्ण होनेसे पहिले ही रावण को महा विद्या सिद्धि भई जेजे विद्या सिद्धि भई तिनके संक्षपता से नाम सुनो नभःसंचारिणी कामदायिनी कामगाभिनी दुर्निवारा जगतकंपा प्रगुप्ति भानुमालिनी प्राणमा लधिमा क्षोभा मनस्तंभकारिणी संवाहिनी सुरध्वंसीकौमारी वध्य कारणी मुविधाना तमोरूपा दहना विपलोदरीशुभप्रदा रजोरूपा दिनरात्रिविधायिनी बज्जोदरी समावृष्टि अदर्शिनीअजराअमरा अनवस्तीभनी तोयस्तंभिनीगिीरदारिणी अवलोकिनी ध्वंसी धीराघोरा भुजंगिनी वीरिनीएकभुवनाअवध्यादारुणा मदनासिनी भास्करी भयसंभूतिऐशानि विजियाजया बंधिनी मोचनी बाराही कुटिलाकृति चितोद्भवकरी शांति कौवेरी वशकारिणी योगेश्वरी वलोत्साही चंडा भीति प्रविषिणी इत्यादिअनेक महा विद्या रावणको थोड़े ही दिनोंमें सिद्ध भई तथा कुम्भकर्णको पांच विद्या सिद्ध भई उन के नाम सर्वहारिणी अतिसंवर्धिनीजू भिजीब्योमगामिनी निद्रानी तथा विभीषणको चार विद्या सिद्ध भई सिद्धार्था शत्रु दमनी व्याघाता आकाशगामिनी यह तीनोही भाई विद्याके ईश्वर होते भये और | For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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