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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन जैनका यति चला आवे है ऐसा कौनका भाग्य जिसके घर यह पुण्याधिकारी श्राहार करे कौन के पवित्र करे उसके बड़े भाग्य जिसके घर यह आहार लेय यह इन्द्रसमान रघुकुलका तिलक अनोभ पराक्रमी शीलका पहाड़ गमचन्द्र पुरुषोत्तम है इसके दर्शनकर नेत्र सफलहोय मन निर्मल होय जन्म सफलहोय देही पाये का यह फल जो चारित्र पालिये इसभांति नगरके लोक रामके दर्शन कर श्राश्चर्यको प्राप्त भये नगरमें रमणीक ध्वनि भई श्रीराम नगरमें पैठे और समस्त गली और मार्ग ना पुरुषों के समूह कर भर गया नर नारी नाना प्रकार के भोजन, घरमें जिनके प्रकाश जलकी झारी भरे बारे पेखन करे हैं निर्मल जल दिखावते पवित्र धोवती पहिरे नमस्कार करे हैं । हे स्वामी अन्न सिष्ठ अन्न जल शुद्ध इसभांति के शब्द करे हैं नाही समावे है हृदयमें हर्ष जिनके हे मुनींद्र जयवन्त होवो हे पुण्यके पहार नादो विरदो इन बचनोंकरदशोंदिशा प्ररित भई घरघरमें लोग परस्पर बात करें हैं स्वर्णके भाजनमें दुग्ध दधि घृत ईषरसदाल भात तीर शीघ्रही तयारकर राखो मिश्री मोदक कपूरकर युक्त शीतल जल सुन्दर पूरी शिखिरणी भली भांति विधि से राखो या भांति नर नारियोंके बचनालाप तिनकर समस्त नगर शब्दरूप होय गया महासंभूमके भरे जनअपने बालकोंको न विलोकतंभए मार्ग | में लोक दोडे सो काहूके धके से कोई गिर पडे इसभांति लोकनके कोलाहलकर हाथी खूटा उपाडते भये और गांममें दौडते भए तिनके कपोलों से मद झरिबे कर मार्गमें जलका प्रवाह होयगया हाथियों के भय से घोड़े घास तज तज बन्धन तुडाय तुडोय भाजे और हींसतेभए सो हाथी घोड़ों की घमसाणकर लोक || व्याकुल भए तव दान विषे तत्पर राजा कोलाहल शब्द सुन मन्दिर के ऊपर बाय खडा रहा दूरसे मुनि For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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