SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1038
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११०२८ ज्योतिषी देव है तिन से स्वर्ग बासी दवों की प्रति अधिक ज्योति है और सब देवों से इन्द्र की पराम महा अधिक है अपने तेजकर दशों दिशा विषे उद्योत करता सिंहासन विषे तिष्ठता जैसा जिनेश्वर भासे तैसा भासे इंद्रके इंद्रासन का और सभा का जो समस्त मनुष्य सहस्र जिला कर सैकड़ों वर्ष लग वर्णन करें तोभी न कर सके सभा में इंद्र के निकट लोकपाल सब देवों में मुख्य हैं मुन्दर है चित्त जिनके स्वर्ग से चय कर मनुष्य होय मुक्ति जावें हैं सोलहस्वर्ग के बारह इन्द्र हैं एकएक इंद्र के चारचार लोकपाल एक भवधारी हैं और इंद्रों में सौधर्म सनत्कुमार महेन्द्र लातवेन्द्र सत्यरेन्द्र पारणेंद्र यह षट् एकभवधारी हैं और शची इन्द्राणी लोकांतिक देव पंचम स्वर्ग के तथा सर्वार्थसिद्धि के अहिमिन्द्र मनुष्य होय मोक्ष जावे हैं सो सौधर्मइन्द्र अपनी सभा में अपने समस्त देवों कर युक्त बैठा लोकपालादिकाने अपने स्थानक बैठे सो इन्द्रशास्त्रकाव्याख्यानकरते भए वहां प्रसंग पाय यह कथन किया अहो देवो तुम अपने भाव रूप पुष्प निरन्तर महा भक्ति कर अहंत देव को चढ़ावो अहंतदेव जगत् का नाथ है समस्त दोषरूप बन के भस्म करिवे को दावानल समान है जिसने संसार का कारण मोत्तरूप महा असुर अत्यन्त दुर्जय ज्ञान कर मारा, वह असुर जीवों का बड़ा बैरी निर्विकल्प मुख का नाशक है और भगवान् बीतराग भव्य जीवों को संसार समुद्र से तारिबे समर्थ हैं संसार समुद्र कषाय रूप उग्र तरंग कर व्याकुन है काम रूपग्राह कर चंचलता रूप मोह रूप मगर कर मृत्यु रूप है ऐसे भवसागर से भगवान् विना कोई तारिख समर्थ नहीं कैसे हैं भगवान जिनको जन्म कल्याणक विषे इन्द्रादिक देव सुमेरुगिीर । ऊपर क्षीरसागर के जल कर अभिषेक करावे हैं और महा भक्ति कर एकाग्रचित्त होय परिवार । - For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy