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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पर असी मुनि को आज्ञा पाय मुनि को प्रणाम कर बद्मासन घर तिष्ठा मुकट कुण्डल हार प्रादि सर्व प्रा-1 १०२६॥ भूषण डारे और बस्त्र डारे जगत् से मनका राग निवारा, स्त्रीरूप बन्धनतुडाय ममतामोह मिटाय आप को स्नेह रूप पाश सेछुडाय विष समान विषय सुख तज कर बैराग्य रूप दीपक की शिखा कर राग रुप अन्धकार निवारकर शरीर और संसारको प्रासार जान कमलों को जीते असे सुकमार जेकर तिनक(सिरके केश लौच करताभया समस्त परिग्रह से रहित होय मोक्षलक्ष्मी को उद्यमीभया महाव्रत धरे असंयम पर हरे हनुमान की लार साडा सात सौ षडे राजा विद्याधरशुद्धचित्त विद्यद्रगति को प्रादि दे हनमानकेपरममित्र अपने पुत्रों को राज्य देय अठाईसमूल गुण धार योगीन्द्र भये । और हनूमान की राणी और इन राजाओं की राणी प्रथम तो वियोग रूप अग्नि करततायमान विलाप करती भई फिर बैराग्य को प्राप्त होयवन्धु मति नामा आर्यिका के समीप जाय महाभक्ति कर संयुक्त नमस्कारकर आर्यिकाके व्रत धारती भई वेमहा बुद्धिवन्ती शीलवन्ती भव भ्रमण के भयसे आभूषण डार एक सफेद वस्त्र राखती भई शीलही है याभूषण जिनके तिन को राज्यविभूति जीर्ण तृणसमोन भासती भई और हनूमान महा बुद्धिमान महातपोधन महापुरुष संसारसे अत्यन्त विरक्त पंचमहाबत पञ्चसमिति तीन गुप्तिधार शैल कहिये पर्वत उससे भी अधिक श्रीशैल कहिये हनुमान राजा पवन के पुत्र चारित्र विषे अचल होते भये तिनका यश निर्मल इन्द्रादिक देव गा बारम्बार बन्दना करे और बडे बडे राजा कीर्ति करें निर्मल है आचरण जिन का असा सर्वज्ञ बीतराग देव का भाषा निर्मल धर्म आचार सोभवसागर के पोर भयावे हनमानमहा मुनि पुरुषों में सूर्य समान तेजस्वी जिनेन्द्रदेव | का धर्म आराध ध्यान अग्नि कर अष्ट कर्म की समस्त प्रकृति इन्धन रूप तिनको भस्म कर तुङ्गिगिरि For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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