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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराण पद्म वर्धन अयोध्याका राज्य करता भया और मधुसैकड़ों बरस ब्रतपाल दर्शन ज्ञान चारित्रतप एही चार अाराधना आराध समाधि मरणकर सोलवां अच्युत नामा स्वर्ग वहां अच्युतेंन्द्र भया और कैटभ पंद्रमा पारण नामा स्वर्ग वहां पारणेंद्र भया गौतम स्वामीकहे हैं हे श्रेणिक यह जिनशासनका प्रभाव जानों जो ऐसे अनाचारीभी अनाचारका त्यागकर अच्युतेंद्र पदपावे अथवा इन्द्र पदका कहां आश्चर्य जिन धर्मके प्रसादसे मोक्ष पावे मधुका जीव अच्युतेंद्रथा उसके समीप सीताका जीव प्रतेंद्र भया और मधु का जीव स्वर्गसे चयकर श्रीकृष्णकी रुक्मिणी राणीके अद्युम्न नामा पुत्र कामदेव होय मोक्ष लही और कैटभका जीव कृष्णकीजामवन्ती राणीके शंभुकुमार नामा पुत्र होय परम धामको प्राप्त भया यह मधूका व्याख्यान तुझे कहा अब हे श्रेणिक बुद्धिवन्तों के मनको प्रिय ऐसे लक्ष्मण के श्रष्ट पुत्र महा धीरबीर तिनका चरित्र पापोंका नाश करणहारा चित्तलगाय सुनो॥ इति १०६ वां पर्व संपूर्णम ॥ अथानन्तर कांचन स्थान नामा नगर वहां राजा कांचनरथ उसकी राणी शतहदा उसके पुत्री दोय अति रूपवन्नी रूपके गबकर महा गर्बिततिनकेस्वयंवरके अर्थ अनेक राजाभूचर खेचर तिनके पुत्र कन्याके पिता नेपत्रलिख दूत भेजे शीघ्बुलाएसोदूत प्रथमही अयोध्या पठाया और पत्रमें लिखा मेग पुत्रियोंकास्वयंबर है से अपकृपाकरकुमारोंकोशीघ्रपठावोतबरामलक्षमणने प्रसन्नहायपरम्ऋषियुक्तसर्वसुतपठाएदोनोंभाइयों के सकल कुमार लव अंकुशको अग्रेसर कर परस्पर महा प्रेमके भरे कांचनस्थानपुर को चले सैकड़ों विमानों में बैठे अनेक विद्याधर लार,रूपकर लक्षमीकर देवों सारिखे अाकाशके मार्ग गमन करते भये | सोबडी सना सहित आकाश स पृथिवी को देखते जावें कांचनस्थानपुर पहुंचे वहां दोनों श्रोणियोंके विद्या For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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