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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir এরাত্ম दिखाइये पतिने नमानी राजा मधु चन्द्राभा को देख मोहित भयो मनमें विचारी इस सहित विन्ध्याचलके बन का बास भला और इसविना सर्व भूमि का राज्य भी भला नहीं सो राजा अन्याय ऊपर आया तब मंत्री ने समझाया अवार यह बात करागे तो कार्य सिद्ध न होयगा और राज्य भ्रष्ट होयगा तब राजा मन्त्रियों के कहेसे राजा बीरसेनको लारलेय भीम पर गया उसे युद्ध में जीत वशीभत किया और और सब राजा वशकिए फिर अयोध्या आए चन्द्राभा के लेयवे का उपाय चिन्तया सर्वराजा बसंत की क्रीडा के अर्थ स्त्री सहित बलाए और बीरसेनको चन्द्रामा सहितकुलाया. तबभी चन्द्राभाने कही कि मुझे मत लेचलो सोनमानी लेही पाया, राजानेमास पर्यंत बनमें क्रीडा करो और राजा पाए थे तिनकोदान सनमान कर स्त्रियों सहित विदा किए और बीरसेनको केयकदिनराखा और बीरसेनकोभी अतिदान सनमान कर बिदा किया और चन्द्राभाके निमित्त कही इनके निमित्त अद्भुत आभूषण बनवाये हैं सो अभी वन नहीं चुके हैं इसलिये इनको तिहारे पीछे विदा करेंगे सो वह भोला कछ समझ नहीं घरगया वाकेगए पीछे मधुने चन्द्राभाको महिलमें बुलाया अभिषेककर पटराणी पददिया सबराणियोंके ऊपरकरी भोगकर अंघभया है मन जिसका इसे राख आपको इन्द्र समान मानताभया और वीरसन ने सुनी कि चन्द्राभा मभने राखी तब पगलो होय कैयक दिन में मंडव नामा तापस का शिष्य होय पंचाग्नि तप करता भया और एक दिन राजा मधु न्याय के अासन बैठा सो एक परदारा रत का न्याय प्रायासो राजा न्यायमें बहुत देर लग बैठ रहे फिर मन्दिर में गए तब चन्द्राभा ने कही महाराज आज धनी बेर क्यों लगी हम क्षुधा कर खेदखिन्न भई श्राप भोजन करो तो पीछे भोजन करें, तब राजा मधुने कही आज एक परनारीस्तकान्याय ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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