SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir ५. ३ ॥ 44600...........४०००००० पअनन्दिपञ्चविंशतिका । और न ज्ञानरूपी समुद्र उनकी नजर पड़ा है तथा कहींपर उन्होंने समतारूपी शुद्ध नदीको भी नहीं देखा है इसीलिये वे मूर्खपुरुष पापोंके सर्वथा नाश करनेवाले इन पवित्र तीर्थोको छोड़कर जो वास्तविक तीर्थ नहीं है तीर्थाभास अर्थात् तीथों के समान मालूम पड़ते हैं ऐसे गंगाआदि तीर्थो में स्नान करते हैं और स्नान करके अपनेको अत्यंत संतुष्ट मानते हैं । भावार्थ:-यदि निश्चयनयसे देखाजावे तो सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्ररूपी नदीमें भलीभांति स्नानकरनेसे समस्त पापोंका नाशहोता है किन्तु इनसे भिन्न नदियों में स्नानकरनेसे थोड़ेभी पापोंका नाश नहीं होता किन्तु जो पुरुष पापी है मूर्खहै इसलिये अपने पापोंकी तीव्रतासे अथवा दुर्भाग्योंसे जिन्होंने सम्यग्दनिरूपी तालाबको नहीं देखा है तथा सम्यग्ज्ञानरूपी समुद्रभी जिनकी नजरनहीं पड़ा है और अत्यंतशुद्ध समतारूपी नदीकी ओरभी जो झांककर नहीं देखसके हैं वेही ऐसे समस्तपापोंके नाशकरनेवाले पवित्र तीर्थों को छोड़कर सदा पापके संचयकरनेवाले तथा जो तीर्थ नहीं है (तारनेवाले नहीं हैं) किंतु उल्टे संसारमें डुबानेवाले होनेकेकारण तीर्थके समानमालूम पड़ते हैं ऐसे गंगा त्रिवेणी आदि तीर्थोंको ही उत्तमतीर्थ मानकर उनमें स्नानकरते हैं तथा उनमें स्नानकर अपनेके संतुष्ट मानते हैं तथा कृतकृत्यमानते हैं थह बड़ी भारी भूल है इसलिये जो सर्वथा पापोंका नाशकरना चाहते हैं सुखी होना चाहते हैं उनको चाहिये कि वे समस्तपापोंके नाशकरनेवाले तथा परम पवित्र सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्ररूपी नदियों में ही स्नानकरैं और इन्हींको परमतार्थ समझै किन्तु इनसे भिन्न गंगा आदि नदियोंकीओर झांककरभी नहीं देखै और उनको तीर्थ न समझकर सर्वथा तीर्थाभास ही समझै ॥ ५॥ .000000000000000000000000000000000000000000000000000000 For Private And Personal
SR No.020521
Book TitlePadmanandi Panchvinshatika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanandi, Gajadharlal Jain
PublisherJain Bharati Bhavan
Publication Year1914
Total Pages527
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy