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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ܙܙܙܙܙܙܙ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀. पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका । झम्पाः कुर्वदितस्ततः परिलसदाह्यार्थलाभाददन्नित्यं व्याकुलता परां गतवतः कार्य विनाप्यात्मनः । ग्रामं वासयदेन्द्रियं भवकृतो दूरं सुहृत्कर्मणः क्षेमं तावदिहास्ति कुत्र शमिनो यावन्मनो जीवति ॥१॥ अर्थः-हेभगवन् जोमन बाह्यपदार्थीको मनोहर मानकर उनकी प्राप्तिके लिये जहां तहां भटकता है और जो ज्ञानस्वरूपभी आत्माको विना प्रयोजन सदा अत्यंत व्याकुल करता रहता है तथा जो इन्द्रियरूपी गांवको बसानेवाला है अर्थात् इसमनकी कृपासेही इन्द्रियोंकी विषयोंमें स्थिति होती है और जो संसारके पैदाकरने वाले काँका परममित्र है अर्थात् आत्मारूपी घरमें सदा काँको लाता रहता है ऐसा मन जबतक जीवित रहता है तबतक मुनियों को कदापि कल्याणकी प्राप्ति नहीं होसक्ती । भावार्थ:-जबतक आत्मामें काका आवागमन लगारहता है तबतक आत्मा सदा व्याकुलही बना रहता है वे कर्म आत्मामें मनके द्वारा लायेजाते हैं क्योंकि मनके सहारेसही इन्द्रियां रूप आदिके देखने में प्रवृत्त होतीहैं तथा रूप आदिके देखनेसे रागद्वेष उत्पन्न होते हैं फिर उनसे ज्ञानावरण आदि द्रव्यकमौकी उत्पत्ति होती है इसलिये उनकमाँ के संबन्धसे आत्मा सदा व्याकुलही रहता है और जब आत्माही व्याकुल रहा तव मुनियोंको कल्याणकी प्राप्तिभी कैसे होसक्ती है इसलिये कल्याणका रोकनेवाला मनही है॥ १४॥ नूनं मृत्युमुपैति यातममलं त्वां शुद्धवोधात्मकं त्वत्तस्तेन बहिर्धमत्यविरतं चेतो विकल्पाकुलम् ।. स्वामिन् किं क्रियतेऽत्र मोहवशतो मृल्ने भीःकस्य तत् सर्वानर्थपरम्पराकृदहितो मोहःसमेवार्यताम्॥ अर्थः-निर्मल तथा अखंडज्ञानस्वरूप आपको पाकर मेरा मन मृत्युको प्राप्तहोजाता है इसलिये हेजिनेन्द्र नानाप्रकारके विकल्पोंकर युक्त मेराचित्त आपसे बाह्य समस्त पदार्थोंमेंही निरन्तर घूमता फिरता है क्या कियाजाय ? क्योंकि मृत्युसे सर्वही डरते हैं अतः यह सविनय प्रार्थना है कि समस्तप्रकारके अनाँको ܐ ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ For Private And Personal
SR No.020521
Book TitlePadmanandi Panchvinshatika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanandi, Gajadharlal Jain
PublisherJain Bharati Bhavan
Publication Year1914
Total Pages527
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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