SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir 49. पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका । स्वामिन् वेत्सि ममेकजन्मजनितं दोष न किञ्चित्कुतो हेतोस्ते पुरतःसवाच्य इति मे शुद्ध्यर्थमालोचितम् ॥ अर्थ:-हे जिनेन्द्र यदि तुम भूत भविष्यत् वर्तमान तीनोंकालोंके गोचर नाना पर्यायोंसहित लोक तथा अलोकको चारोओरसे एक साथ जानते हो तथा देखते हो तो हे स्वमिन् मेरे एकजन्ममें होनेवाले पापोंको क्या तुम नहीं जानते हो ? अर्थात अवश्य ही जानते हो इमलिये अपनेको स्वयं निदताहुवा जो मैं आपके सामने अपने दोषोंका कथन (आलोचन) करता हूं सो केवल शुद्धिकेलिये ही करता हूं। भावार्थ:-हे भगवन् जब तुम अनंतभेदसहित लोक तथा अलोकको एकसाथ जानते हो तथा देखते हो तो आप मेरे समस्त दोषोंको भी भलीभांति जानते हो फिर भी जो मैं आपके सामने अपने दोषोंका कथन (आलोचन) करता हूँ सो केवल आपके सुनानेकेलिये नहीं किन्तु शुद्धिकेलिये ही करता हूं ॥ ८ ॥ आश्रित्य व्यवहारमार्गमथवा मूलोत्तराख्याच गुणान साधोर्धारयतो मम स्वृतिपथप्रस्थापि यद्दषणम्। शुद्ध्यर्थं तदपि प्रभो तव पुरः सजोऽहमालोचितुं निःशल्यं हृदयं विधेयमजडैर्भव्यर्यतः सर्वथा ॥ ९ ॥ अर्थः-व्यवहारनयको आश्रयणकरके और मूलगुण तथा उत्तरगुणोंको धारण करनेवाले मुझ मुनीको जिस दूषणका भलीभांति स्मरण है उस दूषणकी शुद्धिके अर्थ आलोचना करने केलिये हे प्रभो जिनेन्द्र में आपके सामने सावधानीसे चैठाहुवा हूं क्योंकि ज्ञानवान भव्य जीवों को सदा अपना मन माया मिथ्या निदान इनतीनों शोकर रहित ही रखना चाहिये ॥९॥ सर्वोप्यत्र मुहुर्मुहुर्जिनपते लोकैरसङ्ख्यर्मितव्यक्ताव्यक्तविकल्पजालकलितः प्राणी भवेत्संसृतौ । तत्तावद्भिरयं सदैव निचितो दोषेर्विकल्पानुगैः प्रायश्चितमियत्कुतः श्रुतगतं शुद्धिर्भवत्सन्निधे ॥१०॥ हेभगवन् इससंसारमें समस्तजीव वारंवार असंख्यातलोक प्रमाण प्रकट तथा अप्रकट नाना प्रकारके 10000००००००००० २५२॥ For Private And Personal
SR No.020521
Book TitlePadmanandi Panchvinshatika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanandi, Gajadharlal Jain
PublisherJain Bharati Bhavan
Publication Year1914
Total Pages527
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy