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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ पचनन्दिपश्चविंशतिका। जाती है उसको ज्ञानीजन अभयदान कहते हैं तथा उस अभयदानके विना बाकीके तीनों दान सर्वथा निष्फल है अथवा आहार औषध और शास्त्र इनतीनों दानोंके देनेसे क्षुधाके भयका तथा रोगके भयका और मूर्खताके भयकाही नाश होता है इसलिये एक अभयदानही समस्तदानोंमें उत्कृष्टदान है। भावार्थ:-अभय का अर्थ भयका न होना होता है यदि आहार औषध तथा शास्त्र दानके देनेपर भी क्षुधा, रोग, तथा मूर्खतासे उत्पन होनेवाले भयोंका नाश होता है तो वे तीनोंही अभय दानके ही आधीन हैं इसलिये अभयदान ही समस्त दानों में उत्कृष्ट दान है ॥ ११ ॥ आहारात्सुखितौषधादतितरां नीरोगताजायते शास्त्रात्पात्रनिवेदितात्परभवे पण्डित्यमत्यद्भुतम् । एतत्सर्वगुणप्रभापरिकरः पुन्सोऽभयादानतः पर्यन्ते पुनरुन्नतोन्नतपदप्राप्तिर्विमक्तिस्ततः ॥ १२॥ अर्थः-उत्तमआदिपात्रोंमें आहारदानके देनेसे तो इन्द्र धरणेन्द्र चक्रवर्ती आदिके सुखोंकी प्राप्ति होती है तथा औषधादानके देनेसे परभवमें अत्यन्त रूपवान तथा नीरोग शरीर मिलता है और शास्त्रदानके देने से अत्यन्तआश्चर्यकी करनेवाली विद्वत्ताकी प्राप्ति होती है और अभयदानके देनेसे सुख तथा नीरोगपना आदि समस्तगुणोंकी प्राप्ति होती है अन्तमें उत्तमोत्तम चक्रवर्ती आदि पदोंकी प्राप्ति होकर मोक्षकी प्राप्ति होती है इसलिये उत्तमोत्तमसुख नीरोगता आदि गुणोंके अभिलाषीमनुष्यों अवश्यही चारोंप्रकारका दान देना चाहिय॥१२॥ कृत्वा कार्यशतानि पापबहुलान्याश्रित्य खेदं परं भ्रान्त्वा वारिधिमेखलां वसुमती दुःखेन यच्चार्जितम्। तत्पुत्रादपि जीवितादपि धनं प्रेयोऽस्य पन्था शुभो दानं तेन च दीयतामिदमहोनान्येन तत्सद्गतिः॥१३॥ अर्थ सैकडों पापसहित कार्योको करके तथा नानाप्रकारके दुःखोंको उठाकरके और समुद्रपर्वत पृथ्वी पर भ्रमणकरके बड़े कष्ट से धनका संचय किया जाता है तथा वह धन पुत्र और अपने जीवनसे भी प्यारा ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० २२२॥ For Private And Personal
SR No.020521
Book TitlePadmanandi Panchvinshatika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanandi, Gajadharlal Jain
PublisherJain Bharati Bhavan
Publication Year1914
Total Pages527
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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