SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओसवाल ज्ञाति समय निर्णय (७) इसपर कितनेक लोगोंने यह अनुमान कर लिया कि ओशियों नगरी ही दशवीं सदी में वसी है तो ओसवालों की उत्पत्ति प्राचीन नहीं है पर इस समयके बाद होनी चाहिये । (च) विक्रम की दशवीं शताब्दी पहिले ओसवाल ज्ञाति का शिलालेख नहीं मिलनेके कारण भी लोगोंने अनुमान कर लिया कि ओसवाल ज्ञाति विक्रम की दशवी शताब्दी के बाद बनी होगी. (ट) ओशियों के महावीर मन्दिर में प्रशस्ति शिलालेख खुदा हुवा है उस का समय विक्रम सं. १०१३ का है इससे यह ही अनुमान होता है कि इस समय के आसपास में ओसवाल ज्ञाति बनी होगी। उपर लिखी तिनों मान्यता अर्थात् वि. सं. २२२ वीरात् ७० वर्ष-और विक्रम की दशवी शताब्दी इन तीनों मान्यता के अन्दर कोनसी मान्यता अधिक विश्वसनीय और प्रमाणिक है इस पर हम हमारे अभिप्राय यहांपर प्रगट करना चाहते हैं ।। (१) भाट भोजक सेवक और कुलगुरुओं की मान्यता वि. सं. २२२ कि है पर इसमें कोइ इतिहासिक प्रमाण नहीं है तथपि इन लोगों की कवितासे कुच्छ अनुमान किया जा सक्ता है जैसे" आभा नगरीथी आव्यो, जगो जगमें भाण । साचल परिचो जब दीयो, तब सिस चडाई आण ।१। जुग जिमाडयो जुगतसु, दीनो दान प्रमाण । देशल सुत जग दीपतों, ज्यारी दुनियों माने आण । २ । छूप धरी चित भूप, सैना ले आगल चाले । अडब For Private and Personal Use Only
SR No.020519
Book TitleOswal Gyati Samay Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherGyanprakash Mandal
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy