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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४ ) जैन जाति महोदय प्र० चोथा. और प्रतिष्ठा करानेवाले उन आचार्यश्री के स्थापन किये हुवे उकेशवंशीय श्रावक थे उस समय कोरंटामेंभी महावीर मन्दिरकी प्रतिष्ठा हुई थी. (३) जैनधर्म विषय प्रश्नोत्तर नामक पुस्तक में जैनाचार्य श्री विजयानंदसुरिने जैन धर्म की प्राचीनता बतलाते हुवे व भगवान् पार्श्वनाथ होनेमें प्रमाण देते हुवे उपकेश गच्छाचार्यो से रत्नप्रभसूरिने वीरात् ७० वर्षे उपकेश नगरी में ओसवाल बनाया लिखा है । (४) गच्छमत प्रबन्ध नामके ग्रन्थ में श्राचार्य बुद्धिसागर - सूरि लिखते है कि उपकेश गच्छ सब गच्छोमें प्राचीन है. इस गच्छ में आचार्य रत्नप्रभसूरिने वीरात् ७० वर्षे उकेशा नगरीमें उकेश वंश ( ओसवाल ) कि स्थापना की थी इत्यादि costyle ( ५ ) प्राचीन जैन इतिहास में लिखा है कि प्रभव स्वामि के समय पार्श्वनाथ संतानिये रत्नप्रभसूरिने वीरात् ७० वर्षे उएस नगर में उएसवंस ( ओसवाल ) की स्थापना की. (६) जैन गोत्र संग्रह नामके प्रन्थ में पं. हिरालाल हंसराज अपने इतिहासिक ग्रन्थ में लिखा है कि वीरात् ७० वर्षे पार्श्वनाथ के छुट्टे पाट आचार्य रत्नप्रभसूरिने उकेश नगर में उकेशवंस की स्थापना की. For Private and Personal Use Only (७) पन्यासजी ललीतविजयजी महाराजने आबु मन्दिरोंका निर्माण नाम की पुस्तक में कोचरों ( ओसवाल ) का इतिहास लिखते हुवे लिखा है कि आचार्य रत्नप्रभसूरिने वीरात् ७० वर्षे उके शपुर म ओसवाल बनाये थे उसमेंकी यह कोचर ज्ञाति भी एक है.
SR No.020519
Book TitleOswal Gyati Samay Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherGyanprakash Mandal
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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