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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दूसरी शंका का समाधान. अगरवाले छीपे पाटीदार आदि अनेक ज्ञातियां जैन धर्म्म पालती है पर उन का न्याति जाति का व्यवहार अपनि अपनि ज्ञाति के साथ में है इस रीती से अगर उकेशपुर ( ओशियों) में कोइ शूद्र जैन धर्म पालनेवालों कि कल्पना कर लि जावे तों भी शूद्र जाति का भोजन व बेटी व्यवहार क्षत्रिय ब्राह्मण के साथ होना अर्थात् ओसवालों के साथ होना सिद्ध नहीं होता है। जैसे शैव-विष्णु धर्म पालनेवाले क्षत्रिय ब्राह्मण वैश्य है वैसे ही शूद्र भी है तो क्या कोई यह कल्पना कर सकेगा कि शैव- विष्णु धर्म पालनेवाले शूद्रों का भोजन व बेटी व्यवहार क्षत्रिय ब्राह्मणों के साथ है ? इसी माफीक जैन धर्म पालनेवालों को भी समझ लेना चाहिये । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शूद्रादि जातियों जैन धर्म नहीं पालने का कारण यह है कि जैन धर्म के नियम ( कायदा ) आचार खान पान इतने उंचे दर्जे के है कि जिसमें मांस मदिरा अभक्ष अनंतकाय तो सर्वथा ताज्य है सुवां सुतक और ऋजोशलादि का वडा परेज रखा जाता है इत्यादि से सख्त नियम शूद्रादि से पालना मुश्किल होने से ही वह जैन धर्म्म पालन करने मे असमर्थ है अगर कोइ शूद्र पूर्व क्षयोपशम से जैन धर्म के नियमानुसार जैन धर्म पालन करता भी हो तो क्या हरजा हैं कारण जैन सिद्धान्तकारों ने श्रात्मा निमित वासी मानी है, और जैनेत्तर लोगो ने भी अपने धर्मशास्त्रों में लिखा है यथा For Private and Personal Use Only (३१)
SR No.020519
Book TitleOswal Gyati Samay Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherGyanprakash Mandal
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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