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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ प्रोसवाल ज्ञाति के समय निर्णमा (२५ ) मूर्ति के निचे वि. सं. ५०८ भैशाशाहा के नाम का शिलालेख है उन भैशाशाह का परिचय देते हुवे मुन्शीजीने लिखा है कि भैशाशाहा के और रोडाविणजारा के आपस में व्यापार संबन्ध ही नहीं पर आपस में इतना प्रेम था कि दोनों का प्रेम चिरकाल स्मरणिय रहे इसलिये भैशा-रोडा इन दोनों के नामपर 'भैशरोडा' नाम का ग्राम वसाया वह आज भी मोजुद है. जैन समाज में भैशाशाहा वडा भारी प्रख्यात है वह उपकेश ज्ञाति आदित्यनाग गोत्र का महाजन था जब वि. स. ५०८ पहिला उपकेश ज्ञाति व्यापार मे भी अच्छी उन्नति करलिथी तो वह ज्ञाति कितनी प्राचीन होनी चाहिये इस्केलिये पाठक स्वयं विचार कर सक्ते है । (१२) वल्लभि नगर का भंग कराने मे जो कांगसीवालि कथा को इतिहासकारोंने स्वीकार करी है वह शेठ दूसरा नहीं पर उपकेश ज्ञाति बलहागोत्र के रांका वांका नाम के शेठ थे और उन कि संतान आज रांका वांका जातियो के नाम से मशूहर है (१३) श्वेतहूण के विषय में इतिहासकारों का यह मत्त है कि श्वेतहूण तोरमाण पंजाब से विक्रम की छट्ठी शताब्दी में मरूस्थल की तरफ आया । और मारवाड का इतिहासिक स्थान भिन्नमाल को अपने हस्तगत कर अपनि राजधांनी भिन्नमाल म कायम की. जैनाचार्य हरिगुप्तसूरिने उस तोरमाण को धर्मोपदेश दे जैनधर्म का अनुरागी बनाया जिस्के फल में तोरमाणने भिन्नमाल मे भगवान् ऋषभदेव का विशाल मन्दिर बनाया बाद For Private and Personal Use Only
SR No.020519
Book TitleOswal Gyati Samay Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherGyanprakash Mandal
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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